लोबिया है लाभ की खेती

लोबिया है लाभ की खेती

हाल की बारिश से मिली नमी के सहारे किसान खाली खेतों में लोबिया की बुआई कर सकते हैं। सब्जी, चारा और हरी खाद के गुण के नाते यह बहुपयोगी फसल है। पोषक तत्वों (प्रोटीन, शर्करा, विटामिन एवं खनिज) से भरपूर होना और कम समय में तुड़ाई के लिए तैयार होना इसकी खूबी को और बढ़ा देता है। बलुई दोमट जमीन जिसमें पानी लगता है उसमें किसान इसकी खेती कर सकते हैं।

राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के उपनिदेशक डा.रजनीश मिश्र के अनुसार मौसम देखकर किसान इस समय लोबिया की बुआई कर सकते हैं। एक गहरी और दो-तीन जुताई के बाद खेत बुआई के लिए तैयार हो जाता है। अगर उपलब्ध हो तो बुआई के दो हफ्ते पूर्व प्रति एकड़ 20-25 टन की दर से कंपोस्ट खाद डालें। खेत की अंतिम तैयारी के समय नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश का प्रयोग करें। इनका अनुपात 20:60:60 किग्रा का रखें। खर-पतवारों का नियंत्रण रासायनिक और पारंपरिक दोनों तरीकों से संभव है। बेहतर उपज के लिए बुआई मेड़ पर करें। लाइन से लाइन की दूरी 45 और पौध से पौध की दूरी 15 सेंटीमीटर रखें। बुआई के पूर्व थीरम से बीज शोधन करने से पौधे निरोग होते हैं।

उन्नत प्रजातियां-

नरेंद्र देव कृषि एवं प्रोद्यौगिकी विश्वविद्यालय से संबद्ध कृषि विज्ञान केंद्र के सब्जी वैज्ञानिक डा.एसपी सिंह के अनुसार बेहतर उपज के लिए किसान उन्नत प्रजातियों का चयन करें। काशी कंचन सबसे अधिक उपज देने वाली प्रजाति है। प्रति हेक्टेअर 150-200 क्विंटल तक उपज देने वाली इस प्रजाति की फलियां हरे रंग की, मुलायम और गूदेदार होती हैं। फसल में लगने वाले कुछ रोगों के प्रति भी यह प्रतिरोधी है। अन्य प्रजातियां हैं। काशी श्यामल, काशी गौरी, काशी उन्नति, पूसा कोमल, लोबिया-263 और आइआइएचआर-16।

साभार जागरण