विकास की अंधी दौड़ बिगाड़ रही है प्राकृतिक संतुलन : प्रधानमंत्री

विकास की अंधी दौड़ बिगाड़ रही है प्राकृतिक संतुलन : प्रधानमंत्री

तापमान बढ़ने से पौधों और जीव-जंतुओं के जीवन-चक्र में बदलाव आ रहा है। इसकी वजह से रोजाना 50 से डेढ़ सौ प्रजातियां खत्म हो रही हैं।  विकास की अंधी दौड़ से पैदा हुई चुनौतियों के चलते जैव प्रजातियों पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इससे निपटने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिकों, नीति नियामकों और शिक्षाविदों से समुचित उपाय ढूंढने की अपील की है। उन्होंने कहा है कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा, पौष्टिकता, स्वास्थ्य और पर्यावरण सुरक्षा के लिए जैव विविधता के संरक्षण पर चर्चा अहम हो गई है। तापमान बढ़ने से पौधों और जीव-जंतुओं के जीवन-चक्र में बदलाव आ रहा है। इसकी वजह से रोजाना 50 से डेढ़ सौ प्रजातियां खत्म हो रही हैं।

रविवार को 'अंतरराष्ट्रीय कृषि जैव विविधता कांग्रेस-2016' के उद्घाटन समारोह में मोदी ने कहा भारत जैव विविधताओं का भंडार है। पुरखों की सोच की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा, 'वे सामाजिक-आर्थिक नीतियों में माहिर थे। विभिन्न उत्पादों को सामाजिक संस्कारों से जोड़ दिया गया था। तिलक लगाने में चावल के दाने हैं, तो पूजा में सुपारी रखना आवश्यक बना दिया गया, ताकि किसानों को इन प्रजातियों से आर्थिक लाभ हो।'

मोदी ने कहा कि हमारे एग्रीकल्चर (कृषि) में कल्चर (संस्कृति) का बड़ा रोल है। वर्तमान में भी कृषि यहां 50 फीसद लोगों को रोजगार मुहैया कराती है। हर देश दूसरे से सीखता है, जिसे जारी रखने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने चिंता जताते हुए कहा कि जैविक विविधता अधिवेशन के प्रस्तावों को स्वीकार करने के बावजूद हर रोज डेढ़ सौ तक प्रजातियां खत्म हो रही हैं। आने वाले सालों में आठ में एक पक्षी और 25 फीसद जानवरों के विलुप्त होने का खतरा है। एक अनुमान के मुताबिक जलवायु परिवर्तन से 2050 तक कुल वन्य प्रजातियों का 16 फीसद तक लुप्त हो सकता है। इस चिंताजनक स्थिति से पार पाने की जरूरत है।

भारत की विशेषताओं का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि विभिन्न जलवायु क्षेत्र की वजह से भारत जैव विविधता के मामले में बहुत समृद्ध है। यहां 47 हजार से अधिक वनस्पति की प्रजातियां हैं, तो जानवरों की 89 हजार से अधिक प्रजातियां। प्रकृति से तालमेल बिठाने के लिए संस्कृति की बहुत अहमियत है। सतत विकास के लिए संस्कृति और सभ्यता का योगदान नितांत आवश्यक है।कुपोषण, भुखमरी और गरीबी को दूर करने के लिए उन्होंने प्रौद्योगिकी की भूमिका को सराहते हुए सावधानी बरतने की भी हिदायत दी। उन्होंने कहा कि कृषि जैव विविधता का प्रबंधन हमारी प्राथमिकता है, लेकिन जनसंख्या का बढ़ता दबाव और विकास की अंधी दौड़ प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ रही है।