सितम्बर माह के प्रमुख कृषि कार्य

सितम्बर माह के प्रमुख कृषि कार्य

सितम्बर में मक्का ज्वार की कटाई की जाती है।

धान के खेत में नमी होनी चाहिये, यदि नमी कम हो तो सिंचाई करते हैं।

महीने के अन्त में अलसी, सरसों एवं कुसुम इत्यादि फसलें बोते हैं।

रबी की फसलों के लिये खेत की तैयारी करते हैं।

आलू, जो जल्दी पकते हैं, उसे बोया जाता है।

आम के लगाये गये नये पौधों की सुरक्षा करते हैं।

लीची के 1 साल के पौधे को 5 किलो गोबर/कम्पोस्ट खाद 25 ग्राम फास्फेट 50 पोटाश 50 ग्राम नाइट्रोजन देते हैं ।

अमरुद के बगीचों की सिंचाई करते हैं।

फसलों में यैलो मोसिक वायरस लाने की सबसे बडा कारण सफेद मक्खी

फसलों पर वायरस अटैक कर रहा है। इससे पैदावार कम हो रही है और 3-4 दिन के अन्दर पूरे खेत में फैल जाता है और सम्पूर्ण फसल पीली पड़ जाती है। । 90 प्रतिशत से ज्यादा मिर्च की फसल में वायरस को फैलाने में सफेद मक्खी की भूमिका रही है। बीजों का उचित उपचार नहीं किया जाना, साथ ही जानकारी का अभाव, विलंब से मानसून आना। लंबे समय तक पड़ने वाला सूखा भी वायरस को फैलाने में सहयोगी रहा। किसानों द्वारा अंधाधुंध कीटनाशकों का उपयोग, बिना जानकारी के कीटनाशकों के मिश्रण का छिड़काव। किसानों द्वारा लगातार एक ही फसल का लिए जाना। फसल चक्र में बदलाव नहीं करना आदि कारण है। सब्जी की फसलों पर कीटाणु और वायरस अटैक से  

सब्जियों में वायरल का अटैक एवं उपचार

सब्जियों में वायरल का अटैक एवं उपचार

मौसम खरीफ फसलों के अलावा हरी सब्जियां भी बर्बाद होने की स्थित में पहुंच गई हैं। रात में उमस भरी गर्मी और दिन में तेज धूप हो रही है, जिससे हरी सब्जी की फसलों पर कीटाणुओं और वायरल अटैक शुरू हो गया है। इससे टमाटर, बैंगन, मिर्च, लौकी, परवल और भिंडी समेत अन्य हरी सब्जियां प्रभावित हो रही हैं। अल्प वर्षा के कारण इन फसलों की बाढ़ भी रुक गई है। कीटाणुओं के प्रकोप से मुर्रा, फलछेदक, समरछेदक जैसे अनेक रोग लग रहे हैं, जिससे सब्जी उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।

पहले कम बारिश और अब गर्डल बीटल इल्ली का सोयाबीन अटैक

बारिश की लंबी खेंच से  बोई गई सोयाबीन की फसल पर खतरा मंडराने लगा है। पानी के अभाव में जहां पौधे मुरझा रहे हैं, वहीं इल्लियों का प्रकोप भी बढ़ रहा है। पौधों पर सेमीलूपर के साथ गर्डल बीटल इल्ली का प्रकोप भी है, जो तने को नष्ट करती है। कृषि विशेषज्ञों की माने तो बारिश की लंबी खेंच से दोबारा बोवनी की नौबत आ सकती है। खासकर उन खेतों में, जो बल्ड़ियों पर है। लिहाजा, कृषि वैज्ञानिक किसानों को पौधों को लंबे समय तक जिंदा रखने के उपाय बता रहे हैं।

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