जल प्रबंधन की जरूरत

भारत में सिंचाई कुप्रबंधन के कारण करीब छह-सात मिलियन हेक्टेयर भूमि लवणता से प्रभावित है। यह स्थिति पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में ज्यादा है। इसी तरह करीब छह मिलियन हेक्टेयर भूमि जलजमाव से प्रभावित है। 

देश में पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा एवं उत्तर-पूर्वी राज्यों में जलजमाव की समस्या है। असमतल भू-क्षेत्र वर्षा जल से काफी समय तक भरा रहता है। इसी तरह गर्मी के दिन में यह अधिक कठोर हो जाती है। ऐसे में इसकी अम्लता बढ़ जाती है और इसमें खेती नहीं हो पाती है। 

पोटाश का उपयोग

पोटाश फसलों की वृद्वि में अन्य पोषक तत्वों की दक्षता भी बढ़ाता है. देश में विभन्न स्थानों में किये गये शोध से पता चला है कि पोटाश के प्रयोग से पौधों के विकास में नाइट्रोजन, फास्फोरस और जिंक की उपयोग दक्षता में वृद्धि होती है. पोटाश फसलों को मौसम प्रतिकूल स्थिति जैसे – सूखा, ओला, पाला व कीट व्याधि आदि से बचाव में मदद करता है. यह पौधों की जड़ों की समुचित वृद्धि करके फसलों को भूमि से उखड़ने से बचाता है. इसके उपयोग से पौधों की कोशिका दीवारें मोटी होती हैं और फसलें असमय गिरने से बच जाती हैं. पोटाश के प्रयोग से फसलोत्पादन में जल उपयोग क्षमता बेहतर बनी रहती है.

डाकघर व कृषि विज्ञान केंद्र के रास्ते बीज क्रांति की तैयारी

पूसा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक देशभर में फैले डाकघर और कृषि विज्ञान केंद्र के नेटवर्क का इस्तेमाल कर बीज क्रांति लाने की तैयारी में जुटे हैं। योजना के तहत किसानों को उन्नत प्रजाति के बीजों के उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके लिए पूसा संस्थान की ओर से व्यापक मॉडल तैयार किया गया है। परियोजना के लिए पूसा संस्थान की ओर से उत्तर प्रदेश के सीतापुर, बिहार के बक्सर, मध्य प्रदेश के शिवपुर तथा राजस्थान के सिरोही के डाकघरों का चयन किया गया है।

फसलों के जहरीले तत्वों पर अब होगा नियंत्रण

फसलों के जहरीले तत्वों पर अब होगा नियंत्रण

जीन साइलेंसिंग तकनीक पर रिसर्च होगा। इस तकनीक के माध्यम से फसलों के हानिकारक टॉक्सिन्स (जहरीले तत्वों) को दूर किया जाएगा। इससे कुछ हानिकारक तत्वों की वजह से अनुपयोगी कही जाने वाली फसलें उपायोगी हो जाएंगी। अभी इस तकनीक का इस्तेमाल कुछ विकसित देशों में हो रहा है।

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