मिश्रित खेती

जब फसलों के उत्पादन के साथ-साथ पशुपालन भी किया जाता है तो इसे मिश्रित कृषि या मिश्रित खेती (Mixed farming) कहते हैं।

फसलोत्पादन के‚ साथ-साथ जब पशुपालन भी आय का स्रोत हो तो ऐसी खेती को मिश्रित खेती कहते हैं। मिश्रित् खेती में फसलोत्पादन के साथ केवल दुधारू गाय एवं भैंस पालन तक ही सीमित रखा गया है। जब फसलोत्पादन के साथ गाय-भैंस के अलावा भेड़, बकरी अथवा मुर्गी-पालन भी किया जाता है तब ऐसे प्रक्षेत्र को विविधकरण खेती की श्रेणी में रखा जाता है। बैलों का पालन डेरी व्यवसाय के रूप में नहीं देखा जाता है। भारत में पहले से भी मिश्रित् खेती होती आ रही है

मिश्रित् खेती क्यों? मिश्रित खेती कहीं पर लाभ के उद्देश्य से किया जाता है तो कहीं मजबूरी के कारण। जैसे किसी क्षेत्र विशेष में अगर पशुओं की महामारी होने की सम्भावना संभावना रहती है तो केवल फसल उत्पादन ही कर पाता है और यदि फसलों में बीमारी होने की सम्भावना हो तो कृषक अपने अजीविका के लिये पशुपालन की तरफ देखता है।

फसलों के साथ-साथ पेड़ों एवं झाड़ियों को समुचित प्रकार से लगाकर दोनो के लाभ प्राप्त करने को कृषि वानिकी (Agroforestry) कहा जाता है। इसमें कृषि और वानिकी की तकनीकों का मिश्रण करके विविधतापूर्ण, लाभप्रद, स्वस्थ एवं टिकाऊ भूमि-उपयोग सुनिश्चित किया जाता है।

दलहन फसल के साथ मिश्रित खेती

दलहनी फसलें जहां मानव जीवन के लिए प्रोटीन का काम करती है, वहीं उनकी जड़ों में फ़िक्स नाइट्रोजन मृदा उर्वरता को बढ़ाता है व सुखाड़ की स्थिति में भी ये फसलें कुछ बेहतर उपज दे जाती हैं। परिचय दलहनी फसलें एक तरफ जहां मानव स्वास्थ्य के लिए प्रोटीन का काम करती हैं, वहीं उनकी जड़ों में बने राइजोबियम गांठ में नाइट्रोजन फिक्स रहता है, जिस कारण भूमि की उर्वरता भी बढ़ती है, खाद की आवश्यकता कम होती है और इस प्रकार खेती की लागत कम होती है। बुंदेलखंड के अंतर्गत आने वाले सभी जनपदों में ज्यादातर जमीनें ऊंची-नीची, असमतल होने की वजह से यहां पर खरीफ की फसल को ही प्रमुखता दी जाती है। इसलिए यह क्षेत्र दलहनी फसल