हरी खाद

गेहूं की कटाई के बाद तैयार करें हरी खाद

गेहूं की कटाई के बाद किसान को खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए हरी खाद तैयार करनी चाहिये।गेहूं 30 अप्रैल तक पूरी तरह से कट जाएगा। इसके बाद ज्यादातर खेत खाली पड़े रहते है। जिसमें किसान ढैंचा, सन, आदि की उपज लेकर हरी खाद ले सकते हैं। किसान भाई तीसरी फसल के रूप में मूंग (दलहन) की खेती कर सकते है। यह फसल 65-70 दिनों में तैयार हो जाती है। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है। इस दौरान किसान चाहे तो तीसरी फसल के रूप में सूरजमुखी (तिलहन) की खेती कर सकते है।

हरी खाद एक वरदान

मृदा उर्वरकता एवं उत्पादकता बढ़ाने में का प्रयोग प्राचीन काल से चला आ रहा है। सधन कृषि पद्धति के विकास तथा नगदी फसलों के अन्तर्गत क्षेत्रफल बढ़ने के कारण हरी खाद के प्रयोग में निश्चिय ही कमी आई लेकिन बढ़ते ऊर्जा संकट, उर्वरकों के मूल्यों में बृद्धि तथा गोबर की खाद एवं अन्य कम्पोस्ट जैसे कार्बनिक स्रोतों की सीमित आपूर्ति से आज हरी खाद का महत्व और बढ़ गया है। 

पटसन उत्पादन का आर्थिक विश्लेषण एवं विपणन प्रबन्धन

पटसन भारत के पूर्वी व उत्तर राज्यों में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण पर्यावर्णीय अनुकूल रेशा फसल है | इसकी खेती लगभग 8 लाख हेक्टर में लगभग 40 लाख लघु व सीमान्त कृषकों द्वारा की जाती है | पश्चिम बंगाल पटसन के क्षेत्रफल एवं उत्पादन में देश का एक अग्रणी राज्य है | इसके अलावा इसकी खेती बिहार, असम, ओड़ीशा, त्रिपुरा, मेघालय तथा उत्तर प्रदेश में की जाती है | वर्तमान दशक में नवीनतम कृषि तकनीकों एवं क्षेत्रफल विस्तार के कारण इसकी राष्ट्रीय उत्पादकता 23.0 कु॰/हे॰ तथा वर्ष 2012-2013 में लगभग 103.4 लाख बेल का उत्पादन हुआ है | विभिन्न कारणों से पटसन उत्पादक राज्यों में  इसकी  औसत उत्पादकता में कृषकों के

मृदा उर्वरता बनाए रखने के लिए हरी खाद का उपयोग

हरी खाद की प्रक्रिया पर लंबे समय से चल रहे प्रयोगों व शोध कार्यों से सिद्ध हो चुका है कि हरी खाद का प्रयोग अच्छे व निरोगी फसल उत्पादन के लिए बहुत उपकारी है। भारत में हरी खाद के अंतर्गत 49.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल है। हरी खाद के लिए मुख्य रूप से दलहली फसलें उगाई जाती हैं। इसकी जड़ों में गांठें होती हैं। इन ग्रंथियों में विशेष प्रकार के सहजीवी जीवाणु रहते हैं जो वायुमंडल में पाई जाने वाली नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करके मृदा में नाइट्रोजन की पूर्ति करते हैं। इस प्रकार से स्पष्ट है कि दलहनी फसलें मृदा की भौतिक दशा को सुधारने के अलावा उसमें जीवांश पदार्थ एवं नाइट्रोजन की मात्रा भी बढ़ाती हैं। दलहनी