पोषक तत्व

एक पोषक तत्व या पोषकतत्व वह रसायन होता है, 
सूक्ष्म पोषक तत्व या सूक्ष्मपोषकतत्व वो पोषक तत्व हैं जिनकी आवश्यकता जीवन भर लेकिन, बहुत कम मात्रा में पड़ती है। स्थूल पोषक तत्वों के विपरीत, मानव शरीर द्वारा यह एक बहुत कम मात्रा में लिया जाने वाला आवश्यक खनिज आहार है (आमतौर पर 100 माइक्रोग्राम/दिन से भी कम)। सूक्ष्म पोषक तत्वों में लोहा, कोबाल्ट, क्रोमियम, तांबा, आयोडीन, मैंगनीज, सेलेनियम, जस्ता और मोलिब्डेनम आदि शामिल हैं। (यहां प्रयुक्त "खनिज" भूगोल मे प्रयुक्त खनिज से अलग है)।
विटामिन कार्बनिक रसायन होते हैं, जिनका सेवन किसी प्राणी के अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, पर इसका संश्लेषण प्राणी स्वयं नही कर सकते इसलिए इन्हें, उन्हें अपने आहार से प्राप्त करना पड़ता है।जिसकी आवश्यकता किसी जीव के उसके जीवन और वृद्धि के साथ साथ उसके शरीर के उपापचय की क्रिया को चलाने के लिए भी पड़ती है और जिसे वो अपने वातावरण से ग्रहण करता है। पोषक तत्व वह पदार्थ हैं जो शरीर को समृद्ध करते हैं। यह ऊतकों का निर्माण और उनकी मरम्मत करते हैं, यह शरीर को उष्मा और ऊर्जा प्रदान करते हैं और यही ऊर्जा शरीर की सभी क्रियाओं को चलाने लिए आवश्यक होती है। पोषक तत्वों के सेवन के विभिन्न तरीके हैं, जहां प्राणी यह तत्व अपने भोजन से प्राप्त करते हैं, वहीं पादप इनको अपनी जड़ों के माध्यम से सीधे मिट्टी से या अपने वातावरण से प्राप्त करते हैं। कुछ पौधे, जिन्हें मांसभक्षी पादप कहा जाता है पहले कीट, पतंगो आदि को बाहर अपने पाचक रस से पचा कर फिर उनसे प्राप्त पोषक तत्वों को चूस लेते हैं। पोषक तत्वों के प्रभाव उनकी ली गयी खुराक पर निर्भर करते हैं।
जैविक पोषक तत्वों में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन (अमिनो अम्ल) और विटामिन शामिल हैं। अकार्बनिक रासायनिक यौगिकों, जैसे खनिज लवण, पानी और ऑक्सीजन को भी पोषक तत्व माना जा सकता हैं। किसी जीव को एक पोषक तत्व किसी बाहरी स्रोत से लेने की आवश्यकता तब पड़ती है जब उसका शरीर इनकी पर्याप्त मात्रा का संश्लेषण स्वयं उसके शरीर मे नहीं कर पाता। जिन पोषक तत्वों की आवश्यकता अधिक मात्रा में पड़ती है उन्हें स्थूल पोषक तत्व कहते हैं; इसी तरह सूक्ष्म पोषक तत्व कम मात्रा में जरूरी होते हैं।
लगभग ७ ऐसे पोषक तत्व हैं जो पौधों की वृद्धि के लिये बहुत कम मात्रा में लगते हैं किन्तु वे अति आवश्यक हैं। ये पोषक तत्त्व ये हैं- बोरॉन, क्लोरीन, ताँबा, लोहा, मैंगनीज, मॉलीब्डेनम, जस्ता।

गेहूँ कटाई के बाद फसलों के अवशेष (नरवाई) का करें सदुपयोग, बचाएं महत्वपूर्ण तत्व

गेहूँ कटाई के बाद फसलों के अवशेष (नरवाई) का करें सदुपयोग, बचाएं महत्वपूर्ण तत्व

गेहूं आदि फसलों की कम्बाइन हार्वेस्टर से कटाई उपरांत अधिकांश फसलों के अवशेष या नरवाई खेत में रह जाती है, जिसे जलाया नहीं जाना चाहिए। नरवाई जलाने से हमारे खेतों में मौजूद लाभदायक मित्र कीट नष्ट हो जाते है। साथ ही मिट्टी का तापक्रम बढ़ने से उर्वरा शक्ति भी नष्ट होती है, मिट्टी सख्त हो जाती है। फलस्वरूप जुताई करने पर अधिक मेहनत लगती है और डीजल की लागत भी बढ़ जाती है और मिट्टी की जल धारण क्षमता भी कम हो जाती है। नरवाई जलाने से मिट्टी में कार्बन की मात्रा कम हो जाती है जबकि मिट्टी के उपजाऊपन के लिए कार्बन की मात्रा होना लाभदायक होता है।

मृदा में घट रहे उपजाऊ पोषक तत्व

मृदा में घट रहे उपजाऊ पोषक तत्व

पहले से ही प्रकृति की मार झेल रहे किसानों के लिए मृदा में घट रही पोषक तत्व की मात्रा चिंता का कारण बन रही है। कृषि भूमि में पोषक तत्वों की कमी के चलते उर्वरा शक्ति घट रही है जिसका असर फसल उत्पादन पर पड़ रहा है। जिला मुख्यालय पर एक मात्र मिट्टी परीक्षण प्रयोग शाला में आए नतीजों के आधार पर मृदा में पोषण तत्वों की कमी सामने आ रही है।