मजदूर

मजदूर जिसे श्रमिक भी कहते हैं। मानवीय शक्ति के द्वारा जिसमें दिमागी कार्य,शारीरिक बल और प्रयासों से जो कार्य करने वाला होता है, उसे ही मजदूर कहा जाता है, कार्य करने के उपरान्त जो कार्य को अपनी मेहनत के द्वारा अपनी मानवीय शक्ति को बेच कर करे, उसी का नाम मजदूर कहा गया है
 ऐसा व्यक्ति जो अपनी श्रम शक्ति को बेचकर अपना रोजगार कमाता है, वह मजदूर है। लेकिन मजदूरों के अधिकारों से संबंधित हिन्दोस्तानी राज्य के कानून जानबूझकर इस परिभाषा को नहीं मानते हैं। इन कानूनों के लागू होने के दायरे की परिभाषा इस प्रकार दी गयी है कि बड़ी संख्या में मजदूर अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं।
औद्योगिक विवाद अधिनियम (1947) की परिभाषा के अनुसार ही आज तक यह फैसला किया जाता है कि कौन मजदूर है जिसके कानूनन कुछ अधिकार हैं। औद्योगिक विवाद अधिनियम के दफा 2 (एस) में मजदूर की परिभाषा इस प्रकार दी गयी है: “मजदूर (प्रशिक्षु समेत) कोई भी ऐसा व्यक्ति है जो मजदूरी या वेतन के बदले, किसी उद्योग में शारीरिक, अकुशल, कुशल, तकनीकी, कार्यकारी, क्लर्क या सुपरवाइज़र का काम करता हो, चाहे काम की शर्तें स्पष्ट या अन्तर्निहित हों, और किसी औद्योगिक विवाद के निपटारे के लिये, इस अधिनियम के तहत वह व्यक्ति भी शामिल है जिसे उस विवाद के संदर्भ में निलंबित, बरखास्त या जिसकी छंटनी की गई हो, या जिसके निलंबन, बरखास्तगी या छंटनी की वजह से वह विवाद पैदा हुआ”।

खेतिहर मजदूरों व किसानों को मिलेगा आधुनिक खेती का प्रशिक्षण

खेतिहर मजदूरों व किसानों को मिलेगा आधुनिक खेती का  प्रशिक्षण

आधुनिक खेती के बदलते स्वरूप और उसकी जरूरतों के मद्देनजर किसानों को मदद देने के लिए पेशेवर लोगों की भारी कमी है। ऐसे प्रशिक्षित पेशेवरों को तैयार करने के लिए सरकार ने कृषि क्षेत्र में कौशल विकास की अनूठी कार्ययोजना तैयार की है। इसके लिए पहली बार पढ़े लिखे बाबू किसानों को मदद पहुंचाने वाले खेतिहर मजदूरों को प्रशिक्षण देकर तैयार करेंगे।

कृषि कर्ज देने की प्रणाली सरल बनाएं बैंक - राधा मोहन सिंह

कृषि कर्ज देने की प्रणाली सरल बनाएं बैंक - राधा मोहन सिंह

घटते किसान और खेतिहर मजदूर व भूमिहीन किसानों की बढ़ती संख्या गंभीर चिंता का विषय है। इस बड़ी चुनौती से निपटने के लिए बैंकों की भूमिका अहम हो जाती है। केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि ऐसे में कृषि ऋण देने की प्रणाली को सरल और सहज बनाने की जरूरत है।

किसानों की आमदनी को दोगुना करने की सरकार की मंशा को फलीभूत करने के लिए शुरू की गई योजनाओं पर कारगर अमल शुरू कर दिया गया है। इसमें वित्तीय संस्थानों का दायित्व बहुत बढ़ जाता है।

Pages