कम होती कृषि जोंतों का विकल्प हो सकती है वर्टिकल खेती
आबादी बढ़ने के साथ कम होती कृृषि योग्य भूमि को देखते हुए जयपुर में वर्टिकल खेती (खड़ी खेती) का सफल प्रयोग किया जा रहा है। खास बात यह है कि इसमें रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओं का उपयोग नहीं होता यानि उत्पादन पूरी तरह आर्गेनिक है।
जयपुर स्थित सुरेश ज्ञान विहार विश्वविद्यालय में पिछले एक साल से वर्टिकल खेती पर रिसर्च हो रही है और परिणाम बहुत ही सकारात्मक आए हैं। इस शोध के बाद आम लोग अपनी छतों पर भी अपने उपयोग लायक सब्जियां पैदा कर सकेंगे। इसके लिए न तो मिट्टी की जरूरत होगी और न तेज धूप की।
विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर एग्रीकल्चर रिसर्च के शोधार्थी कृृषि विज्ञानी अभिषेक शर्मा के मार्गदर्शन में यह प्रयोग कर रहे हैं। यहां टमाटर, चिली, कॉली फ्लावर, ब्रोकली, चीनी कैबेज, पोकचाई, बेसिल, रेड कैबेज का उत्पादन किया जा रहा है।
विश्वविद्यालय के चैयरमेन सुनील शर्मा ने बताया कि अभी प्रारंभिक स्तर पर सब्जियों का उत्पादन होने लगा है लेकिन जल्दी ही अन्य कृृषि उत्पादों के लिए शोध शुरू किए जा रहे है। दावा है कि राजस्थान में यह पहला शोध है जो पूरी तरह से सफल रहा है।
आने वाले समय में पूरे पश्चिमी भारत में कम वर्षा वाले क्षेत्रों यह शोध कारगर साबित हो सकता है। केंद्र के कोऑर्डिनेटर अभिषेक शर्मा ने बताया की हाइड्रोपोनिक तकनीक से कम पानी और बिना मिट्टी की इस फसल की पैदावार रोगरहित होती है। साथ ही इसमें किसी तरह की रसायन खाद का उपयोग नहीं किया जा रहा है।
ऑर्गेनिक होने के कारण ये सब्जियां थोड़ी महंगी हो सकती हैँ। क्या है ये तकनीक वर्टिकल खेती को सामान्य भाषा में खड़ी खेती भी कह सकते हैं। यह खुले में हो सकती है और इमारतों व अपार्टमेंट की दीवारों का उपयोग भी छोटी-मोटी फसल उगाने के लिए किया जा सकता है। वर्टिकल फार्मिंग एक मल्टी लेवल प्रणाली है।
इसके तहत कमरों में एक बहु-सतही ढांचा खड़ा किया जाता है, जो कमरे की ऊंचाई के बराबर भी हो सकता है। वर्टिकल ढांचे के सबसे निचले खाने में पानी से भरा टैंक रख दिया जाता है। टैंक के ऊपरी खानों में पौधों के छोटे-छोटे गमले रखे जाते हैं। पंप के जरिए इन तक काफी कम मात्रा में पानी पहुंचाया जाता है।
इस पानी में पोषक तत्व पहले ही मिला दिए जाते हैं। इससे पौधे जल्दी-जल्दी बढ़ते हैं। एलइडी बल्बों से कमरे में बनावटी प्रकाश उत्पन्न किया जाता है। इस प्रणाली में मिट्टी की जरूरत नहीं होती। इस तरह उगाई गई सब्जियां और फल खेतों की तुलना में ज्यादा पोषक और ताजे होते हैं। अगर ये खेती छत की जाती है तो इसके लिए तापमान को नियंत्रित करना होगा।