खेती-किसानी में बदलाव लाएगा वर्मी कंपोस्ट
स्वच्छतामिशन के इस दौर में कूड़े-कचरे से बन रही जैविक खाद की डिमांड लगातार बढ़ रही है। यह जैविक खाद खेती-किसानी में काफी बदलाव लाएगा। ऐसे में जिले के किसान अब अपने स्तर पर फसलों और बाग-बगीचों से तना-पत्ती एकत्रित करने के साथ कचरे के साथ गोबर मिलाकर इसमें छोड़े गए केंचुए से वर्मी-कंपोस्ट तैयार करने लगे हैं। इसके अलावा स्कूल, आश्रम, फार्म हाउस, खेत-खलिहानों तथा कृषि विज्ञान केंद्र में भी वर्मी कंपोस्ट तैयार किया जाने लगा है।
घरेलू बागवानी और गमलों की जरूरत के लिए इसे घर पर भी बनाया जा रहा है। बचा हुआ भोजन, सब्जियां, फलों के छिलके आदि बाल्टी में इकट्ठा कर लेते हैं। इसमें गोबर, गौमूत्र, लकड़ी का बुरादा और केंचुए मिलाकर बोरी से ढंक दिया जाता है। समय-समय पर पानी के छिड़काव से यह घरेलू अपशिष्ठ भी जैविक खाद बन जाता है।
यूं तैयार होती है वर्मी कंपोस्ट
खेतोंऔर बाग-बगीचों में लगाई फसल पेड़े पौधों से टूटी-बिखरी पत्तियों और तने के विभिन्न भागों को एक गड्ढे में इकट्ठा कर लिया जाता है। अब इसमें आनुपातिक आधार पर गोबर मिलाया जाता है। इसमें केंचुए छोड़कर गड्ढे पर जूट की बोरियां ढंक दी जाती हैं, फिर इस पर पानी का छिड़काव किया जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार एनेलिडा वर्ग का यह जंतु अपने भोजन के रूप में सड़े-गले कार्बनिक जैविक पदार्थ लेता है और उनका बायोलॉजिकल डीग्रेडेशन कर कास्ट के रूप में जैविक उर्वरक त्यागता है। संगठन स्तर पर इस खाद की गुणवत्ता को अच्छा माना जाता है।