गाय माता की कृपा मौत के बाद भी उपजाऊ बना रहीं खेतों को
मध्यप्रदेश के खरगोन जिले के करीब 40 गांवों में जैविक खाद बनाने के लिए नायाब प्रयोग किया जा रहा है। मौत के बाद गोवंश को समाधि दे दी जाती है और करीब छह महीने बाद उससे जैविक खाद बनकर तैयार हो जाती है। इस खाद के प्रयोग से उत्पादन भी लगभग दोगुना बढ़ गया है।
गोवंश (गाय-बैल) जीते जी तो किसानों के काम आते ही हैं, मौत के बाद भी खेतों को उपजाऊ बना रहे हैं। मुख्यालय के पास गायत्री वृक्षतीर्थ मेहरजा में गौशाला के पास ही गौ समाधि स्थल बनाया गया है। यहां दो वर्षों में 50 से अधिक मवेशियों को समाधि दी गई। इनमें से 10 से खाद निकाली जा चुकी है।
गौशाला के कृष्णराव शर्मा ने बताया कि जिनके गोवंश होते हैं, खाद उन्हें ही सौंप दी जाती है। वहीं ग्राम दसंगा के किसान विमल पाटीदार 5 एकड़ खेत में गोवंश से जैविक खाद तैयार कर रहे हैं। यहां अब तक 12 पशुओं को समाधि दी गई है। चार पशुओं से मिली 100 बोरी खाद का उन्होंने खेत में उपयोग किया है। रासायनिक खाद के उपयोग से उन्हें तीन एकड़ में 18 क्विंटल कपास मिलता था, जबकि जैविक खाद के उपयोग से उत्पादन 32 क्विंटल तक पहुंच गया।
16 उपयोगी तत्व
पाटीदार ने बताया कि कुछ साल पहले उन्होंने इंदौर के अजीत केलकर व रवि केलकर से ट्रेनिंग ली थी। इस खाद में पोटाश, नाइट्रोजन, फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्निशियम, सल्फर, बोरान, जिंक सहित 16 तत्व होते हैं, जो फसलों के लिए लाभदायक हैं। पाटीदार की संस्था अभिनव समिति किसानों तक पहुंच रही है। जिले के मोठापुरा, संगा, डोंगरगांव सहित बड़वाह, खरगोन व सेगांव विकासखंड के 40 गांवों में खाद बनाई जा रही है।
ऐसी है प्रक्रिया
6 बाय 4 लंबाई-चौड़ाई और 3 फीट गहरा गड्ढा खोदा जाता है। इसमें गोबर की परत बिछाकर मृत गोवंश को रखा जाता है। 20 किलो नमक व 20 किलो चूना डालकर उसे मिट्टी से ढंक दिया जाता है। छह माह में खाद तैयार हो जाती है। एक समाधि में बनी खाद छह एकड़ में उपयोग होती है।
आस्था नहीं होती आहत
अक्सर देखा जाता है कि मौत के बाद मवेशियों को फेंक दिया जाता है। वहां उन्हें आवारा जानवर नुकसान पहुंचाते हैं। संक्रमण फैलने की आशंका रहती है। पूजी जाने वाली गाय को समाधि देने से धार्मिक आस्था भी आहत नहीं होती।
साभार नई दुनिया जागरण