गेहूं-गन्ना छोड़ मेंथा और खस उगा रहे किसान
छोटे किसानों की खेती के तौर तरीकों में आ रहे इस बदलाव के बारे में बताते हुए केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) के प्रमुख वैज्ञानिक एके सिंह कहते हैं, ”छोटी जोत के किसानों को इनकी खेती करने से ज्य़ादा लाभ मिलता है। जहां धान और गेेहंू जैसी पारंपरिक फसलों से किसान को अधिकतम 50 हज़ार रुपए प्रति हैक्टेयर मुनाफा मिलता है वहीं पिपरमिंट जैसी फसलों से एक हैक्टेयर में मुनाफा 1 लाख रुपए तक मिल सकता है। औषधीय एवं सगंध फसलें बाज़ार में अच्छे दामों पर बिक भी जाती हैं।”
वर्तमान में पूरे विश्व में औषधीय पौधे और इनसे बनी औषधियों के उपयोग में तेजी से विस्तार हो रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि विश्व में औषधीय पौधों पर आधारित उद्योगों में 15-17 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से वृद्घि हो रही है।
उत्तर प्रदेश की खेती में आ रहे इस बदलाव के कारणों को समझाते हुए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कृषि विभाग के निदेशक डॉ आरपी सिंह बताते हैं, ”किसान जो शुरू से पारंपरिक खेती कर रहे हैं उसमें जो भी लागत लगाते हैं उसके अनुरुप उन्हें मुनाफा नहीं होता और घाटे का सामना करना पड़ता है। खेती के अलावा कोई और पेशा तो है नहीं है तो विकल्प के रुप में ये किसान अब लगातार औषधीय खेती अपना रहे हैं। जिसमें अश्वगंधा, मेंथा, खस, आंवला, नीम आदि प्रमुख हैं।”
औषधीय एवं सगंध पौधों की खेती में छोटे किसानों के आगे हमेशा एक समस्या आती जिसके बारे में डॉ आरपी बताते हैं, ”हमारे यहां तकनीक के अभाव के चलते छोटे किसान इस तरह की खेती का विस्तार नहीं कर पा रहे और न ही निर्यात अच्छे तरीके से हो पाता है।” डॉ सिंह आगे कहते हैं, ”इस तरह की खेती के उन्नत तरीकों के साथ-साथ किसानों को इनकी अच्छी मार्केटिंग के गुण भी सिखाने होंगे।”
जानकारी के आभाव में उत्तर भारत में औषधीय एवं सगंध फसलों को लेकर किसानों के ज़हन में मिथक बना हुआ है कि यह फसल खेत सुखा देती है। इस पर जानकारी देते हुए सीमैप के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ एके सिंह कहते हैं, ”कुछ फसलों में पानी की खपत ज्य़ादा रहती है जिसमें मेंथा भी एक मुख्य फसल है। लेकिन इस फसल में पानी की खपत इसलिए भी ज्य़ादा बढ़ जाती है क्योंकि ये फसलें आमतौर पर गीष्म ऋतु में ही लगाई जाती हैं जब खेत जल्दी सूख जाते हैं और किसानों को लगता है कि ये फसल की समस्या है।”
इस तरह की खेती में भी फसल चक्र की उपयोगिता बताते हुए डॉ सिंह के कहा, ”ऐसी फसलों की खेती साल में एक या ज्य़ादा से ज्यादा दो बार की जा सकती है पर भूमि की गुणवत्ता बरकरार रखने के लिए फसल चक्र अपनाना ज़रूरी है।”
औषधीय और सगंध पौधों की खेती से लाभ-
कुछ मुख्य औषधीय एवं सगंध पौधों की खेती व परम्परागत फसलों की खेती के लागत व मुनाफे में तुलना-
मेंथा दो कटाई से प्रति हेक्टेयर में 200-250 किग्रा तेल मिलता है।
कुल खर्च : 35000-40000 रुपये प्रति हेक्टेयर
कुल आय: एक लाख रुपए
शुद्घ लाभ: 60000 – 65000 रुपये प्रति हेक्टेयर
नींबू घास से 200-250 किग्रा तेल प्रति हेक्टेयर मिलता है।
कुल खर्च : 45000 रुपये प्रति हेक्टेयर
कुल आय: 1,10,000 रुपये प्रति हेक्टेयर
शुद्घ लाभ: 65000 रुपये प्रति हेक्टेयर
तीन कटाईयों से औसतन 125-150 किग्रा तेल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है।
कुल खर्च: 34000 रुपये प्रति हेक्टेयर
कुल आय: 145000 रुपये प्रति हेक्टेयर
शुद्घ लाभ: 111000 रुपये प्रति हेक्टेयर
तुलसी के तेल की पैदावार 80-100 किग्रा प्रति हेक्टेयर होती है।
कुल खर्च- 16000 रुपये प्रति हेक्टेयर
कुल आय : 50000 रुपये प्रति हेक्टेयर
शुद्घ लाभ : 34000 रुपये प्रति हेक्टेयर
खस के तेल का उत्पादन 18-25 किग्रा तेल प्रति हेक्टेयर मिलता है।
कुल खर्च : 70000 से 75000 रुपये प्रति हेक्टेयर
कुल आय : 1800000 रुपये प्रति हेक्टेयर
शुद्घ लाभ : 1000000 से 1250000 रुपये प्रति हेक्टेयर
साभार : गॉव कनेक्शन