धान की फसल को बरबाद कर सकता है खैरा
खरीफ फसलों में धान की फसल मुख्य है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में धान की खेती सबसे ज्यादा होती है। इस फसल में खैरा रोग की संभावना ज्यादा होती और अगर समय से उपचार नहीं हुआ तो फसल को भारी नुकसान पहुंचता है। समय रहते इसकी पहचान और रोग से बचाव का उपाय कर फसल को नुकसान से बचाया जा सकता है।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार इस रोग का प्रमुख कारण मिट्टी में जिंक की कमी होती है, जिसके बारे में मृदा परीक्षण कर जाना जा सकता है।
कृषि में सघन विधियां अपनाने एवं अधिक उपज देने वाली फसलों के लगातार उगाने से भूमि में नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश के साथ-साथ सूक्ष्म यांत्रिक तत्वों की भी कमी हो जाती है। यही कारण है कि किसान इन तत्वों के भरपूर प्रयोग के बाद भी प्राय: अच्छी पैदावार नहीं हो पाती। किसान इन सूक्ष्म तत्वों की महत्ता से अक्सर अनभिज्ञ होते हैं। सूक्ष्म यांत्रिक तत्वों में विशेष रूप से जिंक और कहीं-कहीं लौह की भी कमी पाई जाती है। जिंक या जस्ता की कमी के लक्षण विशेष रूप से धान की फसल में देखे जाते हैं।
मृदा वैज्ञानिक रणधीर नायक बताते हैं कि इसके अलावा मृदा परीक्षण में पता चलता है कि पूर्वी उत्तरप्रदेश की मृदाओं में 0.2 पीपीएम से लेकर 3.2 पीपीएम तक जिंक पाया जाता है परंतु अधिकतर निचली मृदाओं में 0.5 पीपीएम ही जिंक मिलता है। उसरीली मिट्टी में इसकी भयंकर कमी पाई जाती है। जिन खेतों में गेहूं के बाद धान की खेती होती है, वहां जिंक की और भी कमी पाई जाती है। इस कमी की वजह से धान में खैरा रोग लग जाता है।
मिट्टी में जिंक की कमी के कारण
धान की फसल में अत्यधिक मात्रा में उर्वरक का प्रयोग।
खेत में लगातार पानी भरा रहना।
मृदा में जीवांश पदार्थ को अत्यधिक डालना।
कैसे पहचाने जिंक की कमी
तीन से चार सप्ताह के बाद पौधों की पत्तियों की नोक पर लाल, बदामी या कथई रंग के धब्बे दिखना।
पौधों की वृद्धि रुकना।
पौधों की जड़ कमजोर व उनका रंग भूरा हो जाना।
जिंक की कमी दूर करने के उपाय
खेत में भरे पानी को समय-समय पर निकालें।
उर्वरकों का संतुलित प्रयोग।
कार्बनिक पदार्थ का सही मात्रा में प्रयोग।
ऊसर मिट्टी में परीक्षण के बाद जिप्सम या पायराइट का प्रयोग।
साभार जागरण