फसलों को पाले से बचाने के लिए करें लगातार करें सिंचाई
गत दिनों से मौसम में अचानक परिवर्तन होने की स्थिति को देखते हुए किसान ऐसी स्थिति में लगातार सिंचाई करें। अभी कुछ दिनों से मौसम में अचानक कभी उतार तो कभी चढ़ाव महसूस हो रहा है। इसका फसलों पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। इसको पाला कह सकतें है।
तापमान में हो रही भारी गिरावट से ठंड और कोहरे से जनजीवन पर असर पड़ रहा है, लेकिन अगर ऐसे ही पारा गिरता रहा तो इसको सबसे ज्यादा असर रबी सीजन की दलहनी फसलों के साथ ही आलू पर पड़ेगा। तापमान कम होने से मटर, चना और आलू की फसलों पर पाला रोग का खतरा मंडराने लगा है। ऐसे में भारतीय दहलन अनुसंधान संस्थान और केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने पाला रोग से 'इन फसलों को कैसे बचाया जाए' इसके लिए बुलेटिन जारी किया है।
तापमान कम होने के साथ ही जैसे ही ठंड बढ़ती है और तापमान 10 डिग्री से कम होने लगता है वैसे ही पाला पड़ना शुरू हो जाता है। पाला रोग में आलू की पत्तियां सूख जाती है।ठंड बढ़ने के साथ ही चना और मटर जैसी दलहनी फसलों पर भी पाला रोग की आशंका ज्यादा है।
किसान अपनी फसल को पाले से बचाने के लिए फसल में सिंचाई के साथ-साथ खेत की मेड़ों पर पड़े कचरे को जलाकर धुआं करें, फसल पर बहुत कम मात्रा में 0.1 प्रतिशत गंधक के तेजाब का घोल का छिड़काव करें। इसी तरह चने की फसल में इल्ली के प्रकोप में नियंत्रण करने के लिए प्रोफेनोफास 50 ईसी 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। लगातार बादलयुक्त मौसम होने से कीट व्याधियों के प्रकोप की संभावना बढ़ती है। ऐसी स्थिति में किसान किसन्हेल्प से या नजदीकी कृषि विकास केन्द्र से संपर्क करें।
kisanhelp के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ राधा कान्त सिंह जी ने मौसम में अचानक परिवर्तन होने की स्थिति को देखते हुए ने किसानों के लिए सुझाव दिए। उन्होंने बताया कि ऐसी स्थिति में किसान लगातार सिंचाई करें। पाले के दुष्परिणामों से बचने के लिए खेत में चूल्हें से निकलने वाली राख़ को खेत में छिद्काब करें गौमूत्र करंज नीम की पत्तियों का काढ़ा प्रत्येक १५ दिनों अन्तर से छिद्काब करते रहें ।