किसानों के प्रदर्शन का वास्तविक कारण क्या है ?
देश की सरकार आज फिर तमाशा वीन बन कर किसानों के आंदोलन का आनन्द लेती नजर आ रही है । मुंबई के आज़ाद मैदान में 30000 आदिवासी किसान 180 किलोमीटर तक पैदल मार्च करते हुए पहुँच गए हैं। ये किसान इस प्रदर्शन के ज़रिए इन मांगों को मनवाने की कोशिश कर रहे हैं।
किसानों द्वारा प्रमुख माँग
वन अधिकार कानून , 2006 सही ढंग से लागू हो
स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों को लागू किया जाए
सरकार कर्ज़ माफ़ी के वादे को पूरी तरह से लागू क रे
लेकिन सवाल ये है कि इन मांगों का सही-सही मतलब क्या है?
वन अधिकार क़ानून, 2006
मुंबई पहुंचे किसानों के इस हुजूम में एक बड़ी संख्या आदिवासी किसानों की है.
शेतकरी संगठन से जुड़े किसान अश्टेकर कहते हैं, "दरअसल ये एक आदिवासियों का मोर्चा है, जो जंगल-जमीन पर अपने हक के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं."
ये किसान साल 2006 में पास हुए वन अधिकार कानून को ठीक ढंग से लागू किए जाने की मांग कर रहे हैं.
दरअसल, वन अधिकार कानून आदिवासी किसानों को जंगल से पैदा होने वाले उत्पादों के सहारे जीविका कमाने का अधिकार देता है.
हालांकि दावा किया जाता है कि महाराष्ट्र के ही दूसरे इलाके गढ़चिरौली में इस कानून को बेहतर ढंग से लागू किया गया है. लेकिन नासिक में ऐसी स्थिति नहीं है.
वन अधिकारियों द्वारा कई बार किसानों के खेत खोद दिए जाते हैं ।वो जब चाहें तब ऐसा कर सकते हैं। किसानों के अनुसार उन्हें अपनी ज़मीन पर अपना हक़ चहिए। किसानों का कहना है कि हमें हमेशा दूसरे की दया पर जीना पड़ता है."
'कर्ज़ माफ़ी हो और हर तरह से हो'
आदिवासी क्षेत्र में काम करने वाले समाजसेवी ध्रुव मनकड बताते हैं कि "महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में वन अधिकार कानून ठीक ढंग से लागू किया गया है लेकिन नासिक में अब तक ऐसा नहीं हुआ है. क्योंकि गढ़चिरौली और नासिक के हालात में अंतर है."
"गढ़चिरौली में प्राकृतिक वन क्षेत्र नासिक की अपेक्षा ज़्यादा है और वहां के किसान सामुदायिक अधिकार के मॉडल पर काम कर सकते हैं. लेकिन नासिक में स्थिति अलग है. नासिक में प्राकृतिक वन क्षेत्र काफ़ी कम है. इस वजह से किसान सामुदायिक अधिकारों की जगह व्यक्तिगत अधिकारों की मांग कर रहे हैं."
किसान हैल्प के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ आर के सिंह जी ने कहा "कि देश की वर्तमान सरकार एवं पूर्व की सरकारों ने पक्षपात रवैया शुरू से ही किसानों के साथ रखा है।अन्य उत्पादन की इकाइयों की तरह हमें भी मूल्य निर्धारण का अधिकार चाहिये।"
उन्होंने साथ ही देश के सभी बड़े एवं छोटे किसान संगठनों से अपील की कि अब इकठ्ठा होकर हमें अपने अधिकारों को छीनना होगा।स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू होने पर भी हमें मूल्य निर्धारण अधिकार नहीं मिलेगा।मूल्यनिर्धारण अधिकार सिर्फ उधोग का दर्जा मिलने के बाद ही मिलेगा आज हमारी जरूरत है कि खेती को उद्योग का दर्जा मिले।"
मार्च कर रहे किसानों की दूसरी सबसे बड़ी मांग ये है कि महाराष्ट्र सरकार कर्ज़ माफ़ी के अपने वादे को पूरा करे.
"कर्ज़ माफ़ी के संबंध में जो आंकड़े दिए गए हैं वो बढ़ा-चढ़ा कर बताए गए हैं. जिला स्तर पर बैंक खस्ताहाल हैं और इस कारण कर्ज़ माफ़ी का काम अधूरा रह गया है. इस तरह की स्थिति में बैंकों को जितने किसानों को लोन देना चाहिए उसका दस फ़ीसद भी अभी नहीं हो पाया है."