गोबर की खाद से लौटाएं मिट्टी की उर्वरता

गोबर की खाद, खनन के दौरान खत्म हुई मिट्टी की उर्वरता को वापस लाने में मदद करती है। यह जानकारी यूएस डिपार्टमेंट आफ एग्रीकल्चर(यूएसडीए) के शोध में सामने आई है। अमेरिका में दक्षिण-पश्चिम मिसौरी, दक्षिणपूर्व कंसास, पूर्वोत्तर ओक्लाहोमा सहित और विश्व के अन्य हिस्सों में हजारों एकड़ भूमि की उर्वरता जस्ते और सीसे के खनन खत्म हो गई।

होमा स्थित यूएसडीए के अंतर्गत चलने वाली संस्था की सुगरकेन सर्विस यूनिट ‘एग्रीकल्चर रिसर्च सर्विस (एआरएस) के पॉल व्हाइट सहित अन्य मृदा वैज्ञानिकों ने ऐसे स्थानों पर गोबर की खाद डालकर यह निरीक्षण किया क्या इससे पौधों के लिए आवश्यक कार्बन की आपूर्ति हो सकती है।

 

‘एआरएस’ के बयान के मुताबिक अध्ययन के शुरू होने के दो साल बाद खाद से सूक्ष्मजीवी, नाइट्रिकरण, एंजाइम गतिविधियां आदि शुरू हो गईं जो पौधे के अनुकूल वातावरण के लिए आवश्यक होती हैं।

 

इस अध्ययन में यह पाया गया कि गोबर की खाद की ज्यादा मात्रा सीसे और जस्ते की मात्रा को 90 प्रतिशत तक कम करती है।

 गोबर खाद बनाने की विधि

 

ठंडी विधि

इसके लिये उचित आकार के गढ़े, 20-25 फुट लंबे, 5-6 फुट चौड़े तथा 3 से लेकर 10 फुट गहरे, खोदे जाते हैं और इनमें गोबर भर दिया जाता है. भरते समय उसे इस प्रकार दबाते हैं कि कोई जगह खाली न रह जाए. गढ़े का ऊपरी भाग गुंबद की तरह बना लेते हैं और गोबर ही से उसे लेप लेते हैं, जिससे वर्षा ऋतु का अनावश्यक जल उसमें घुसने न पाए. तत्पश्चात् लगभग तीन महीने तक खाद को बनने के लिये छोड़ देते हैं. इस विधि में गढ़े का ताप कभी 34 डिग्री से ऊपर नहीं जा पाता, क्योंकि गढ़े में रासायनिक क्रियाएँ हवा के अभाव में सीमित रहती हैं. इस विधि में नाइट्रोजनयुक्त पदार्थ खाद से निकलने नहीं पाते.

गरम विधि

इस विधि में गोबर की एक पतली तह बिना दबाए डाल दी जाती है. हवा की उपस्थिति में रासायनिक परिवर्तन होते हैं, जिससे ताप 60 डिग्री सें. तक पहुँच जाता है. तह को फिर दबा दिया जाता है और दूसरी पतली तह उस पर डाल दी जाती है जिसके ताप बढ़ने दिया जाता है. इस प्रकार ढेर दस से बीस फुट तक ऊँचा बन जाता है, जो कुछ महीनों के लिये इसी अवस्था में छोड़ दिया जाता है. इस रीति से विशेष लाभ यह होता है कि ताप बढ़ने पर घास, मोटे आदि हानिकर पौधों के बीज, जो गोबर में उपस्थित रह सकते हैं, नष्ट हो जाते हैं. प्रत्येक पशु से इस प्रकार 5 से 6 टन खाद बन सकती है.

हवा की उपस्थिति में खाद और गैस उत्पादन

भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित की गई इस विधि में एक साधारण यंत्र का उपयोग होता है, जिसमें गोबर का पाचन हवा की अनुपस्थिति में होता. इस विधि से एक प्रकार की गैस निकलती है, जो प्रकाश करने, यंत्र चलाने तथा भोजन पकाने के लिये ईंधन के रूप में काम आती है. गोबर पानी का मिश्रण कर पाचक-यंत्र में प्रति दिन डालते जाते हैं और निकलने वाली गैस से उपरोक्त काम लेते हैं. इस विधि की विशेषता यह है कि गोबर सड़कर गंधहीन खाद के रूप में प्राप्त हो जाता है और इसके नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश आदि ऐसे उपयोगी तत्व बिना नष्ट हुए इसी में सुरक्षित रह जाते हैं. साथ साथ इससे उपयोगी गैस भी मिल जाती है. अनुमान है कि एक ग्राम परिवार, जिसमें 4-5 पशु हैं, लगभग 70-75 घन फुट जलने वाली गैस प्रति दिन तैयार कर सकता है.

भारत में कुछ गोबर की मात्रा और उसमें उपस्थित नाईट्रोजन फास्फोरस एवं पोटाश का वार्षिक उत्पादन इस प्रकार है:

गोबर (सूखा) 1,446 लाख टन

कार्बनिक पदार्थ 1,157 लाख टन

नाइट्रोजन 18.08 लाख टन

फास्फोरस 7.23 लाख टन

पोटाश 1.085 लाख टन

किंतु गोबर का बहुत थोड़ा भाग ही खाद के रूप में प्रयुक्त हो पाता है. इसी कारण इस देश का उत्पादन दूसरे देशों के अनुपात बहुत कम है. जलावन के रूप में गोबर का उपयोग एक बहुमूल्य खाद को नष्ट करना है. नष्ट करना है. जहाँ तक हो गोबर को खाद के लिये ही काम में लाना चाहिए.