सब्जियां

फसल उत्पादन हेतु सामयिक सलाह

गेहूँ, राई, सरसों की प्रजाति अनुसार समय से कटाई, मड़ाई, सफाई करके अच्छी तरह सुखाकर भंडारण करें।
 देर से बोयी जाने वाली चने की फसल में मार्च के अन्तिम सप्ताह में या अप्रैल के प्रथम सप्ताह में फलीछेदक सूँडी हानि पहुंचाती है। इसकी रोकथाम के लिये डाईमेथोएट 30 ई॰ सी॰ की 600 से 750 मिली मात्रा/है॰ का प्रयोग करें। अंगमारी ग्रस्त पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें। चना मटर में दाने पकने पर समय से काटकर, मड़ाई कर, अच्छी प्रकार सुखाकर भंडारण करें।
 ग्रीष्मकालीन मूँग की बुवाई 10 अप्रैल तक की जा सकती है अतः सरसों, मसूर, गन्ना पेड़ी के खाली खेतों में तुरन्त मूँग की बुवाई कर दें।

भिंडी में कीट और बीमारियों के लक्षण, बचाव

भिंडी गर्मी और बारिश के मौसम में उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण फसल है. बाजार में भिंडी की ज्यादातर मांग होने से किसानों को अच्छा-खासा भाव मिल जाता है, जिससे उनकी बहुत अच्छी आमदनी होती है, लेकिन कई बार भिंडी की फसल में कुछ कीड़े और बीमारियां लग जाती हैं, जिससे फसल की पैदावार और गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है. अगर भिंडी की खेती से अच्छी उपज लेनी है, तो फसल को कीटों और बीमारियों से बचाना बहुत ज़रूरी है. आइए आपको भिंडी की फसल की प्रमुख बीमारियां और उनके रोकथाम की जानकारी देते हैं.

प्रमुख बीमारियां और उनकी रोकथाम

शंखपुष्पी की खेती

पुष्पभेद से शंखपुष्पी की तीन जातियाँ बताई गई हैं। श्वेत, रक्त, नील पुष्पी। इनमें से श्वेत पुष्पों वाली शंखपुष्पी ही औषधि मानी गई है।मासिक धर्म मे सहायक है। शंखपुष्पी के क्षुप प्रसरणशील, छोटे-छोटे घास के समान होते हैं। इसका मूलस्तम्भ बहुवर्षायु होता है, जिससे 10 से 30 सेण्टीमीटर लम्बी, रोमयुक्त, कुछ-कुछ उठी शाखाएँ चारों ओर फैली रहती हैं। जड़ उंगली जैसी मोटी 1-1 इंच लंबी होती है। सिरे पर चौड़ी व नीचे सकरी होती है। अंदर की छाल और लकड़ी के बीच से दूध जैसा रस निकलता है, जिसकी गंध ताजे तेल जैसी दाहक व चरपरी होती है। तना और शाखाएँ सुतली के समान पतली सफेद रोमों से भरी होती हैं। पत्तियाँ 1 से 4 सेण्

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