कम समय में अच्छी पैदावार देती है पपीते की खेती

papaya

बाजारों में मिलने वाला पपीता जहा अल्पावधि में अधिक पैदावार देने वाला होता है, वहीं अति स्वास्थ्यवर्धक भी है। खेतों में इसकी खेती के साथ अन्य फसल की खेती भी की जा सकती है। इसकी खेती सघन व अंतराशस्य फसल के रूप में की जा सकती है। गृह वाटिका के लिए पपीता प्रमुख फल है।

पपीता स्वास्थ्य की दृष्टि से गुणकारी फल है। इसमें विटामिन ए प्रचुर मात्रा में तथा विटामिन सी औसत मात्रा है। किसान इसकी खेती कर दो गुना लाभ कमा सकते हैं। अपर जिला कृषि अधिकारी अशोक कुमार ने कहा कि दोमट या बलुई मिट्टी इसके लिए उत्तम होती है। भूमि में जल निकास का प्रबंध अति आवश्यक है। जड़ों तथा तनों के पास पानी की अधिक मात्रा रुके रहने से जड़ सड़ने लगती है। मृदा का पीएच मान 6.5 से 70 तक होना चाहिए।

उन्होंने बताया कि पपीता की प्रमुख प्रजातियों में, वाशिगटन, कोयम्बटूर, पूसा नन्हा आदि प्रमुख हैं। बीज उत्तम श्रेणी का होना चाहिए। पपीता की बुवाई सितंबर तथा फरवरी मार्च की अच्छी होती है। बीज की बुवाई गमला या पालीथीन के बैग में करनी चाहिए। पौधे जब जमीन से 15 सेमी ऊंचे हो जाएं तो 0.37 फफूंदीनाशक के घोल का छिड़काव करना चाहिए। अच्छी तरह से तैयार खेत में 2 गुणे दो मीटर की दूरी पर 50 गुणे 50 गुणे 50 सेमी आकार के गड्ढे में आधा सड़ी हुई गोबर की खाद एवं आधा मिट्टी मिलाकर जमीन की ऊंचाई से 10.15 सेमी लगाकर गड्डे की भराई के बाद सिंचाई करनी चाहिए।

उन्होंने बताया कि पपीते में फल पौधरोपण के लगभग आठ नौ माह बाद आना शुरू हो जाता है। एक स्वस्थ पेड़ से औसतन 35 किग्रा फल आसानी से प्राप्त हो जाता है। सब्जी, चोखा या इस तरह से प्रयोग के साथ ही पपीते का मुरब्बा, हलवा, अचार आदि स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है।

साभार जागरण