सफेद मक्खी ने केंद्र सरकार को भी किया परेशान

सफेद मक्खी

"हरियाणा और पंजाब के कपास उत्पादक किसानों के लिए सिरदर्द बन चुकी सफेद मक्खी ने केंद्र सरकार को भी चक्कर में डाल दिया है। इससे होने वाले नुकसान को प्राकृतिक आपदा की श्रेणी में रखने को लेकर केंद्र सरकार असमंजस में है।इसी वजह से  अभी तक केंद्र की ओर से कोई टीम राज्यों में नहीं भेजी जा सकी है। राज्यों  को अपने प्राकृतिक आपदा कोष से किसानों के नुकसान की भरपाई करने की सलाह  दी गई है।
कपास में सफेद मक्खी का प्रकोप हरियाणा और पंजाब के साथ राजस्थान में भी  अधिक है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री बीरेंद्र सिंह और खाद्य  प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने सफेद मक्खी से कपास को हो रहे  नुकसान पर बातचीत की है। केंद्र सरकार के सामने यह दुविधा खड़ी हो गई कि  सफेद मक्खी के कारण खत्म हो रही कपास की फसल को किस श्रेणी में रखा जाए,  क्योंकि यह प्राकृतिक आपदा की श्रेणी में शामिल नहीं है।
राज्यों को अपने कोष से किसानों के नुकसान की भरपाई की सलाह 
बीरेंद्र सिंह के अनुसार राज्य सरकारों को सलाह दी गई कि वह केंद्र से  विशेष टीमें भेजने का अनुरोध करें तथा अपने राज्यों में विशेष गिरदावरी  कराएं। हरियाणा के कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ के अनुसार उनके राज्य में  गिरदावरी शुरू हो चुकी है। इसकी कोई समय सीमा नहीं है। किसानों को जिस तरह  से गेहूं की फसल के नुकसान का मुआवजा मिला है, उसी तर्ज पर कपास के नुकसान  का मुआवजा मिलेगा।
पंजाब से ज्यादा नुकसान हरियाणा का 
हरियाणा में कपास का नुकसान पंजाब से ज्यादा हुआ है। तीन साल पहले भी  सफेद मक्खी ने हरियाणा में अपना कहर बरपाया था। प्रदेश में 5 लाख 83 हजार  हेक्टेयर में रोपित कपास की फसल में से 3 लाख 6 हजार हेक्टेयर पर सफेद  मक्खी का कहर सामने आया है। पंजाब में 4.50 लाख हेक्टेयर में कपास बोई गई  थी, जिसमें से 1.36 लाख हेक्टेयर सफेद मक्खी की चपेट में आई है।
हरियाणा अपना बीज कानून बनाने की तैयारी में 
बीज कंपनियों की जवाबदेही तय करने के लिए हरियाणा अपना अलग बीज कानून  बनाने की संभावनाओं पर विचार कर रहा है। इसके तहत नुकसान होने पर बीज  कंपनियों को किसानों की भरपाई के लिए कहा जाएगा। कृषि मंत्री ओमप्रकाश  धनखड़ के अनुसार केंद्रीय बीज कानून राज्यसभा में लंबित है। इसके पास होने  में यदि देरी होती है तो राज्य सरकार अपना बीज कानून  बनाने की संभावनाओं  पर गंभीरता से मंथन करेगी।</p>
वैज्ञानिकों की कमेटी सुझाएगी समस्या से निपटने के उपाय
हिसार कृषि विश्वविद्यालय के उप कुलपति डा. केएस खोखर व पंजाब कृषि  विश्वविद्यालय लुधियाना के उप कुलपति डा. बीएस ढिल्लो के नेतृत्व में पांच  सदस्यीय कमेटी की कपास उत्पादक किसानों समस्या के समाधान पर अध्ययन कर  रही है। इस कमेटी में कपास अनुसंधान केंद्र सिरसा के निदेशक दिलीप मोंगा,  डा. एसएस सिवाच और डा. बलविंद्र सिंह भी काम कर रहे हैैं। यह कमेटी भविष्य  में सफेद मक्खी से निपटने के उपाय सुझाएगी। कमेटी एक माह में रिपोर्ट देगी,  लेकिन इस साल की फसल का क्या होगा, यह सिर्फ गिरदावरी की रिपोर्ट पर भी  निर्भर है
देसी कपास पर नहीं सफेद मक्खी का हमला
सफेद मक्खी का हमला देसी कपास पर नहीं है। सिर्फ बीटी काटन को ही इसने  अपनी चपेट में लिया है। राज्य के सैकड़ों किसान अपनी फसल बहा चुके हैं।  धनखड़ का दावा है कि सिर्फ 37 किसानों ने अपनी फसल बहाई है। राज्य में 25  प्रतिशत तक खराब कपास की फसल का प्रतिशत 77 है, जबकि 26 से 50 प्रतिशत फसल  16 प्रतिशत खराब हुई है।</p><p>
51 से 75 प्रतिशत खराब फसल का प्रतिशत 5 और 100 प्रतिशत खराब फसल का  प्रतिशत तीन बताया जा रहा है। देसी कपास की एचडी 123, एचडी 432,  सीआइएसआर-वन और सीआइएसआर-तीन किस्में किसानों को रोपित करने की सलाह दी गई  है।

साभार जागर