केंचुआ

यह एक कृमि है जो लंबा, वर्तुलाकार, ताम्रवर्ण का होता है और बरसात के दिनों में गीली मिट्टी पर रेंगता नजर आता है। केंचुआ ऐनेलिडा (Annelida) संघ (Phylum) का सदस्य है। ऐनेलिडा विखंड (Metameric) खंडयुक्त द्विपार्श्व सममितिवाले (bilatrally symmetrical) प्राणी हैं। इनके शरीर के खंडों पर आदर्शभूत रूप से काईटिन (Chitin) के बने छोटे-छोटे सुई जैसे अंग होते है। इन्हें सीटा (Seta) कहते हैं। सीटा चमड़े के अंदर थैलियों में पाए जाते हैं और ये ही थैलियाँ सीटा का निर्माण भी करती हैं।

ऐनेलिडा संघ में खंडयुक्त कीड़े आते हैं। इनका शरीर लंबा होता है और कई खंडों में बँटा रहता है। ऊ पर से देखने पर उथले खात (Furrows) इन खंडों को एक दूसरे से अलग करते हैं और अंदर इन्हीं खातों के नीचे मांसपेशीयुक्त पर्दे होते हैं, जिनको पट या भिक्तिका कह सकते हैं। पट शरीर के अंदर की जगह को खंडों में बाँटते हैं (चित्र 1 क)। प्रत्येक आदर्शभूत खंड में बाहर उपांग का एक जोड़ा होता है और अंदर एक जोड़ी तंत्रिकागुच्छिका (nerve ganglion) एक जोड़ी उत्सर्जन अंग (नेफ्रिडिया Nephridia), एक जोड़ा जननपिंड (गॉनैड्स Gonads), तथा रक्तनलिकाओं की जोड़ी और पांचनांग एवं मांसपेशियाँ होती हैं।

केंचुए के शरीर में लगभग 100 से 120 तक खंड होते हैं। इसके शरीर के बाहरी खंडीकरण के अनुरूप भीतरी खंडीकरण भी होता है। इसके आगे के सिरे में कुछ ऐसे खंड मिलते हैं जो बाहरी रेखाओं द्वारा दो या तीन भागों में बँटे रहते हैं। इस प्रकार एक खंड दो या तीन उपखंडों में बँट जाता है। खंडों को उपखंडों में बाँटनेवाली रेखाएँ केवल बाहर ही पाई जाती हैं। भीतर के खंड उपखंडों में विभाजित नहीं होते। केंचुए का मुख शरीर के पहले खंड में पाया जाता है। यह देखने में अर्धचन्द्राकार होता है। इसके सामने एक मांसल प्रवर्ध लटकता रहता है, जिसको प्रोस्टोमियम (Prostomium) कहते हैं। पहला खंड, जिसमें मुख घिरा रहता है परितुंड (पेरिस्टोमियम Peristomium) कहलाता है। शरीर के अंतिम खंड में मलद्वार या गुदा होती है। इसलिये इसका गुदाखंड कहते हैं। वयस्क केंचुए में 14वें 15वें और 16वें खंड एक दूसरे से मिल जाते हैं और एक मोटी पट्टी बनाते हैं, जिसको क्लाइटेलम (Clitellum) कहते हैं। इसकी दीवार में ग्रंथियाँ भी होती हैं, जो विशेष प्रकार के रस पैदा कर सकती हैं। इनसे पैदा हुए रस अंडों की रक्षा के लिये कोकून बनाते हैं। पाँचवे और छठे, छठे और सातवें, सातवें और आठवें और नवें के बीचवाली अंतखंडीय खातों में अगल-बगल छोटे छोटे छेद होते हैं, जिनको शुक्रधानी रध्रं (Spermathecal pores) कहते हैं। इनमें लैंगिक संपर्क के समय शुक्र दूसरे केंचुए से आकर एकत्रित हो जाता है। 14वें खंड के बीच में एक छोटा मादा जनन-छिद्र होता है और 18वें खंड के अगल बगल नर-जनन-----छिद्रों का एक जोड़ा होता है

प्राकृतिक हलवाहा केंचुआ से पायें प्राकृतिक जुताई

कहा जाता है कि मनुष्य धरती पर ईष्वर की सबसे खूबसूरत रचना है। डार्विन के ‘योग्यतम की उत्तरजीविता’ सिद्धांत के अनुसार मनुष्य सभी प्रजातियों में श्रेष्ठ प्रजाति है। लेकिन जीव विज्ञानी क्रिस्टोलर लाॅयड ने अपनी पुस्तक ‘व्हाट आॅन अर्थ इवाॅल्व्ड’ में पृथ्वी पर मौजूद 100 सफल प्रजातियों की सूची में केंचुए को सबसे ऊपर रखा है। उनके अनुसार केंचुआ धरती पर लगभग 60 करोड़ वर्षों से मौजूद है। जबकि मानव प्रजाति धरती पर लगभग 16 लाख वर्ष पूर्व से उपस्थित है। 

प्राकृतिक हलवाहा केंचुआ

कहा जाता है कि मनुष्य धरती पर ईष्वर की सबसे खूबसूरत रचना है। डार्विन के ‘योग्यतम की उत्तरजीविता’ सिद्धांत के अनुसार मनुष्य सभी प्रजातियों में श्रेष्ठ प्रजाति है। लेकिन जीव विज्ञानी क्रिस्टोलर लाॅयड ने अपनी पुस्तक ‘व्हाट आॅन अर्थ इवाॅल्व्ड’ में पृथ्वी पर मौजूद 100 सफल प्रजातियों की सूची में केंचुए को सबसे ऊपर रखा है। उनके अनुसार केंचुआ धरती पर लगभग 60 करोड़ वर्षों से मौजूद है। जबकि मानव प्रजाति धरती पर लगभग 16 लाख वर्ष पूर्व से उपस्थित है।