फास्फेट

फॉस्फेट खनिज खनिजों का एक विशाल एवं विविधापूर्ण समूह है। किन्तु इनमें से कुछ खनिज वर्ग ही अधिक पाए जाते हैं।

कुछ खनिज फास्फेट नीची दिये गये हैं-

triphylite Li(Fe,Mn)PO4
monazite (Ce,La,Y,Th)PO4
hinsdalite PbAl3(PO4)(SO4)(OH)6
pyromorphite Pb5(PO4)3Cl
vanadinite Pb5(VO4)3Cl
erythrite Co3(AsO4)2·8H2O
amblygonite LiAlPO4F
lazulite (Mg,Fe)Al2(PO4)2(OH)2
wavellite Al3(PO4)2(OH)3·5H2O
turquoise CuAl6(PO4)4(OH)8·5H2O
autunite Ca(UO2)2(PO4)2·10-12H2O
carnotite K2(UO2)2(VO4)2·3H2O
phosphophyllite Zn2(Fe,Mn)(PO4)2•4H2O
struvite (NH4)MgPO4·6H2O
Xenotime-Y Y(PO4)
Apatite group Ca5(PO4)3(F,Cl,OH)
hydroxylapatite Ca5(PO4)3OH
fluorapatite Ca5(PO4)3F
chlorapatite Ca5(PO4)3Cl
bromapatite
Mitridatite group:
Arseniosiderite-mitridatite series (Ca2(Fe3+)3[(O)2|(AsO4)3]·3H2O -- Ca2(Fe3+)3[(O)2|(PO4)3]·3H2O)[1]
Arseniosiderite-robertsite series (Ca2(Fe3+)3[(O)2|(AsO4)3]·3H2O -- Ca3(Mn3+)4[(OH)3|(PO4)2]2·3H2O)[2]
परिचय
पृथ्वी की सतह में ०.११% फास्फेट तत्व विद्यमान है। यह अनेक धातुओं अथवा तत्वों के यौगिक के रूप में है। प्राय: १५० से अधिक ऐसे खनिज ज्ञात हैं जिनमें एक प्रतिशत या अधिक फास्फोरस पेंटाक्साइड के रूप मे वर्तमान है। किंतु पृथ्वी की सतह का अधिकांश फास्फोरस एक ही खनिज वंश से संबंधित हैं, जो ऐपेटाइट समूह के अंतर्गत है। इस समूह का रासायनिक सूत्र [Ca10(PO4, CO3) 6F (CI, F, OH)2] है। इस प्रकार के धातुओं और फास्फोरस के यौगिकों को प्राय: खनिज फास्फेट कहते हैं। इन खनिज फास्फेटों को शैल फास्फेट (Rock phosphate) अथवा फास्फेटीय शैल (Phosphate rock) के नाम से भी सामान्य रूप में अभिहित किया जाता है। कभी कभी ऐपेटाइट या शैल फास्फेट न कहकर फास्फोराइट कहा जाता है। वास्तव में ये तीनों नामकरण एक ही खनिज के लिये प्रयुक्त होते हैं, जो चूने की चट्टानों के साथ कैलसियम फास्फेट की ग्रंथियों के अत्यंत ठोस पदार्थ के रूप में पृथ्वी की सतह पर या नीचे पाए जाते हैं।

पहले या धारणा थी कि इनमें जितना भी फास्फेट है वह ट्राइकैल्सियम फास्फेट के रूप में वर्तमान रहता है, किंतु अर्वाचीन अध्ययनों से यह सिद्ध हो चुका है कि सभी प्रकार के फास्फेट शैलों में ऐपेटाइट समूह ही प्रमुख रीति से उपस्थित रहता है। मिट्टी में पाए जानेवाले फास्फेटों के स्रोत ये ही शैल फास्फेट हैं। इसके अतिरिक्त ये समुद्र के तलों में भी पाए जाते हैं। ऐसा विश्वास है कि समुद्र के जल से ही संसार के बड़े से बड़े फास्फेट भंडारों की उत्पत्ति हुई है, क्योंकि ये भंडार प्रत्यक्ष अवक्षेपण अथवा चिड़ियों की बीट, या समुद्र में रहनेवाले प्राणियों द्वारा संगृहीत फास्फोरस के परिणामस्वरूप बने हैं। ऐपेटाइट की पाँच किस्में ज्ञात हैं जो फास्फेट के स्थान पर कुछ फ्लोराइड, क्लोराइड, हाइड्राक्साइड, कार्बोनेट या सल्फेट के प्रतिस्थापन के फलस्वरूप उत्पन्न होती हैं। इनके नाम हैं फ्लोर, क्लोर, हाइड्रॉक्सी, कार्बोनेट तथा सल्फेटो-ऐपेटाइट। फ्लोरीन की उपस्थिति के कारण स्फाटीय चट्टानें जल में नितांत अविलेय होती हैं और इसीलिये वे युगयगों से चली भी आ रही हैं। कुछ मिट्टी में टाइटेनियम, ऐल्यूमिनियम तथा लौह फास्फेट भी पाए जाते हैं, जो जल में अविलेय हैं। ऐपेटाइट में कैल्सियम के साथ मैग्नीशियम, मैंगनीज, स्ट्रौंशियम, सीसा, सोडियम, यूरेनियम, सीरियम तथा अन्य तत्व प्रतिस्थापन द्वारा स्थान ग्रहण करके नाना प्रकर के यौगिकों को जन्म दे सकते हैं। यही नही, फास्फेट का भी प्रतिस्थापन वैनेडेट, आर्सेनेट, सिलिकेट, सल्फेट, कार्बोनेट और आक्सेलेट द्वारा हो सकता है।

प्रकृति में छह प्रकार से ऐपेटाइट पाया जा सकता है :

आग्नेय उत्पत्ति, जिसमें ५-२५% फास्फोरस पेंटॉआक्साइड वर्तमान रहता है।
समुद्री फास्फोराइट, जो अकार्बनिक उत्पत्ति के होते हैं और प्रधानतया कैलसियम फास्फेट होते हैं।
अवशिष्ट कार्बोनैटो-फ्लोर, जो अविलेयता के कारण अब भी अवशिष्ट हैं।
नदियों के कंकरीले भंडार, जिनमें अविलेय फास्फेट रहता है।
फास्फेटीकृत चट्टानें जिनमें दूर-दूर से विलेय फास्फेट आ आकर कैल्सियम, ऐल्यूमिनियम तथा लौह के साथ अविलेय फास्फेट बनाते हैं।
गुआनो (guano) या चिड़ियों की बीट, जो समुद्री पक्षियों तथा चूहों के मल से बनता है और नाइट्रोजन तथा फास्फेट के साथ साथ कार्बनिक पदार्थयुक्त होता है।
इसके अतिरिक्त प्राचीन, अस्थियों के आगार और फास्फेटीय लौह-अयस्क अथवा क्षारीय धातुमल (basic stag) भी महत्वपूर्ण स्रोत हैं। ये खनिज फास्फेट क्रमानुसार निम्नलिखित देशों में अधिक पाए जाते हैं :

संयुक्त राज्य अमरीका, (फ्लोरिडा, टेनेसी तथा इडाहो के भंडार), उत्तरी अफ्रीका (अल्जीरिया, ट्यूनिस मिस्र, मोरक्को के भंडार), सोवियत संघ (कोला महाद्वीप के भंडार), प्रशांत महासागर तथा हिंद महासागर के द्वीप (ओशनिया, क्रिस्टमस तथा नारू के आगार) तथा आस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड, बेल्जियम, फ्रांस और इंग्लैंड।

विश्व भर में फास्फोटीय चट्टान तथा ऐपेटाइट की अनुमानित मात्रा ९६,३८,११,२९,००० टन होगी, जिसमें से भारत में केवल १,०१,२८,००० टन (सन् १८९६ तक के अनुमानानुसार) है। स्पष्ट है कि भारत जैसे विशाल देश के लिये यह मात्रा पर्याप्त नहीं, किंतु फिर भी इस देश की कृषि की उन्नति के लिये इतनी ही मात्रा महत्वपूर्ण है। अभी तक भारत में केवल दो स्थानों पर फास्फेट की खुदाई की जाती है। त्रिचनापल्ली के आसपास जो फास्फेट ग्रंथियाँ हैं उनमें २०-३०% फास्फोरस-पेंटॉक्साइड वर्तमान है और अनुमानित संग्रह २० लाख टन होगा जब कि बिहार में सिंहभूमि के पास पाए जानेवाले संग्रह में १५-२०% ही फॉस्फोरस पेंटॉक्साइड है और अनुमानित संग्रह ७ लाख टन होगा।

अस्थियों में प्राय: ट्राइकैल्सियम फास्फेट के अतिरिक्त सोडियम, मैग्नीशियम तथा कार्बोनेट वर्तमान रहते हैं। कच्ची अस्थियों में २-४% नाइट्रोजन, तथा २२-२५% फास्फोरस पेंटाक्साइड होता है। अस्थियों को उबालकर उनमें फास्फेटों की उपलब्धि बढ़ाई जा सकती है। भारत में सभी उपलब्ध स्रोतों से प्रतिवर्ष ४-५ लाख टन कच्ची अस्थियाँ पशुओं से प्राप्त की जा सकती हैं, किंतु प्रतिवर्ष १ १/२ लाख टन से अधिक का एकत्रीकरण नहीं हो पाता। सन् १९५७ में भारत में ३०-३५ हजार टन अस्थियों का चूर्ण खाद के रूप में खेतों में डाला गया।

धातुमल का निर्माण इस्पात उद्योगों में उपजात के रूप में होता है। लौह अयस्कों में अशुद्धि के रूप में थोड़ा फास्फोरस वर्तमान रहता है। इनका निष्कासन इस्पात की कोटि उन्नत करने के लिये आवश्यक होता है। यदि २% से अधिक फास्फोरस इस्पात में रहे तो वह भंजनशील हो जाता है अत: सन् १८७७ में टॉमस (Thomas) और गिलक्राइस्ट (Gilchrist) ने मिलकर इस्पात निर्माण की एक नवीन पद्धति निकाली जिसमें लोहे की अशुद्धियों -कैल्सियम, सिलिकन, गंधक तथा फास्फोरस-को चूना-परिवर्तक (Lime converter) में रखकर गरम करने से इन अशुद्धियों को चूने के जटिल के रूप में निकाल दिया जाने लगा। यही धातुमल के नाम से विख्यात है। इसमें ७-८% से लेकर १७-२०% तक फास्फोरस पेंटॉक्साइड वर्तमान होता हैं। इस प्रकार से लाखों टन धातुमल जर्मनी, इंग्लैंड तथा फ्रांस में तैयार किया जाता है। इसे टॉमस फास्फेट, सिंडर, फास्फेट, गंधविहिन फास्फेट या कभी कभी लौह फास्फेट के नाम से अभिहित किया जाता है। कृषकों के लिये यह सस्ता एवं उपयोगी फास्फेट उर्वरक है। भारतवर्ष में इस्पात उद्योग की उन्नति के साथ साथ धातुमल के उत्पादन में भी वृद्धि की संभावना है। अभी भी जमशेदपुर, टाटानगर के इस्पात-उद्योग से प्रति वर्ष कई लाख टन धातुमल निकलता है।

पशु खरीदी पर अनुदान देने वाला छत्तीसगढ़ पहला राज्य

पशु खरीदी पर अनुदान

छत्तीसगढ़ राज्य देश का पहला राज्य है, जो 12 लाख का पशु खरीदने पर 6 लाख की सब्सिडी दे रहा है। समय के साथ किसानों को अपनी अतिरिक्त आय बढ़ानी चाहिए। छोटे व मंझोल किसानों की आय दोगुनी करनी है। कृषि क्षेत्र में सरकार अनुदान दे रही है। पशुपालन, उद्यानिकी से जुड़कर अपनी आय बढ़ाए। यह बातें कृषि, पशुपालन, मछली पालन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने शनिवार को राज्यस्तरीय पशु प्रदर्शनी, कृषक सम्मेलन, पशुपालक सह चरवाहा प्रशिक्षण कार्यक्रम में कही।