सिंचाई

सिंचाई मिट्टी को कृत्रिम रूप से पानी देकर उसमे उपलब्ध जल की मात्रा में वृद्धि करने की क्रिया है और आमतौर पर इसका प्रयोग फसल उगाने के दौरान, शुष्क क्षेत्रों या पर्याप्त वर्षा ना होने की स्थिति में पौधों की जल आवश्यकता पूरी करने के लिए किया जाता है। कृषि के क्षेत्र मे इसका प्रयोग इसके अतिरिक्त निम्न कारणें से भी किया जाता है: -

फसल को पाले से बचाने
मिट्टी को सूखकर कठोर (समेकन) बनने से रोकने,
धान के खेतों मे खरपतवार की वृद्धि पर लगाम लगाने, आदि।
जो कृषि अपनी जल आवश्यकताओं के लिए पूरी तरह वर्षा पर निर्भर करती है उसे वर्षा-आधारित कृषि कहते हैं। सिंचाई का अध्ययन अक्सर जल निकासी, जो पानी को प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से किसी क्षेत्र की पृष्ट (सतह) या उपपृष्ट (उपसतह) से हटाने को कहते हैं के साथ किया जाता है।
सिंचाई की विधियाँ[संपादित करें]
भारत में सिंचाई की निम्नलिखित विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं:-

कटवाँ या तोड़ विधि
यह विधि निचली भूमि में धान के खेतो की सिंचाई में प्रयुक्त होती है जबकि इसका प्रयोग कुछ और फसलों में भी किया जाता है। पानी को नाली द्वारा खेत में बिना किसी नियंत्रण के छोड़ा जाता है। यह पूरे खेत में बिना किसी दिशा निर्देश के फैल जाता है। जल के आर्थिक प्रयोग के लिये एक खेत का क्षेत्रफल 0.1 से 0.2 हे

थाला विधि
यह नकबार या क्यारी विधि के समान होता है पर क्यारी विधि में पूरी क्यारी जल से भरी जाती जबकि इस विधि मे जल सिर्फ पेड़ों के चारों तरफ के थालों मे डाला जाता है। सामान्यतः ये थाले आकार में गोल होते है कभी-कभी चौकोर भी होते हैं।

जब पेड़ छोटे होते है थाले छोटे होते है और इनका आकार पेड़ों की उम्र के साथ बढ़ता है। ये थाले सिंचाई की नाली से जुड़े रहते हैं।

नकबार या क्यारी विधि
यह सतह की सिंचाई विधियों की सबसे आम विधि है। इस विधि में खेत छोटी-छोटी क्यारियों में बांट दिया जाता हैं जिनके चारो तरफ छोटी मेड़ें बना दी जाती है पानी मुख्य नाली से खेत की एक के बाद एक नाली में डाला जाता है खेत की हर नाली क्यारियों की दो पंक्तियों को पानी की पूर्ति करती है। यह विधि उन खेतों में प्रयोग की जाती है जो आकार में बड़े होते है और पूरे खेत का समतलीकरण एक समस्या होता है।

इस स्थिति में खेत को कई पट्टियों में बांट दिया जाता है और इनपट्टियों को मेंड़ द्वारा छोटी-छोटी क्यारियों में बांट लिया जाता है इस विधि का सबसे बड़ालाभ यह है कि इस में पानी पूरे खेत में एक समान तरीके से प्रभावित रूप में डाला जा सकता है। यह पास-पास उगाई जाने वाली फसलों के लिये जैसे मूँगफली, गेहूँ, छोटे खाद्दान्न पारा घास आदि के लिये उपयुक्त विधि है। इसके अवगुण है इसमें मजदूर अधिक लगते हैं, मेड़ों और नालियों में खेत का काफी क्षेत्र बरबाद हो जाता है, मेड़ो और नालियों के कारण मिश्रित फसल नहीं बोई जा सकती है।

नली विधि (ड्रिप सिंचाई)
मुख्य लेख : द्रप्स सिंचाई
इस विधि में यंत्र जिन्हें ए.मीटर या एप्लीकेटर कहते हैं के द्वारा जल धीरे-धीरे लगातार बूंद-बूंद करके या छोटे फुहार के रूप में पोधो तक प्लास्टिक की पतली नलियों के माध्यम से पहुँचाया जाता है। यह विधि सिंचाई जल की अत्यंत कमी वाले स्थानो पर प्रयोग की जाती है। मुख्यतः यह नारियल, अंगूर, केला, बेर, नीबू प्रजाति, गन्ना, कपास, मक्का, टमाटर, बैंगन और प्लान्टेशन फसलों में इसका प्रयोग किया जाता है।

बौछारी सिंचाई
इस विधि में सोत्र मे पानी दबाव के साथ खेत तक ले जाया जाता है और स्वचालित छिड़काव यंत्र द्वारा पूरे खेत में बौछार द्वारा वर्षा की बूदों की तरह छिड़का जाता है। इसे ओवर हेड सिंचाई भी कहते हैं। कई प्रकार छिड़काव के यंत्र उपलब्ध हैं। सेन्टर पाइवोट सिस्टम सबसे बड़ा छिड़काव सिस्टम है जो एक मशीन द्वारा 100 हेक्टेअर क्षेत्र की सिंचाई कर सकता है।

पूसा हाइड्रोजल से एक बार की सिंचाई से होंगी फसलें

पूसा हाइड्रोजल से एक बार की सिंचाई से होंगी फसलें

जिन इलाकों में जलस्तर लगातार गिरता जा रहा है, वहां के किसानों के लिए एक राहतभरी खबर है। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च(आईसीएआर) ने पूसा हाइड्रोजैल नाम का एक पदार्थ विकसित किया है, जो दो या तीन बार पानी देने वाली फसलों को सिर्फ एक बार की सिंचाई में तैयार कर देगा।

श्योपुर जिले के बड़ौदा कृषि विज्ञान केन्द्र ने इसका प्रयोग चना व गेहूं की फसलों पर किया है, जहां परिणाम उम्मीद से भी अच्छे आए हैं।

ऐसे काम करता है पूसा हाइड्रोजैल

 

मध्य प्रदेश के बजट में कृषि, सिंचाई, बिजली और सड़कों पर फोकस

मध्य प्रदेश बजट

वित्त मंत्री जयंत मलैया ने 2016-17 के बजट भाषण में पिछले सालों में सड़क, बिजली और सिंचाई सुविधाओं के विकास पर हुए निवेश व निर्मित सुविधाओं के बेहतर प्रबंधन का लाभ मिलने का दावा किया। राज्य की अर्थव्यवस्था लगभग दस फीसदी की औसत वृद्धि दर से आगे बढ़ रही है और इस उच्च विकास दर को बनाए रखने के लिए सरकार प्रयास जारी रखेगी। कृषि पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

उत्तरप्रदेश बजट में खेती-किसानी

उत्तरप्रदेश बजट में खेती-किसानी

जबसे पतवारों ने मेरी नाव को धोखा दिया, मैं भंवर में तैरने का हौसला रखने लगा’ की पंक्ति पढ़कर बजट भाषण शुरू करने वाले अखिलेश ने वित्त वर्ष 2016-17 को ‘किसान वर्ष एवं युवा वर्ष’ घोषित करने का निर्णय लिया है।  विधानसभा में पेश भारी-भरकम बजट में सौगातों की बारिश की.  वित्त वर्ष 2016-17 के लिए तीन करोड़ 46 लाख 935 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तुत किया गया, जो पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले 14.6 प्रतिशत अधिक है.

तीन प्रतिशत पर कृषि ऋण

किसानों का वेतन आयोग कब आएगा ?

देश में नौकर शाही वर्ग के लिए सांतवा वेतन आयोग की सिफारिश हो गई जो की देश की जनसँख्या के 7 से 12 प्रतिशत है लेकिन किसानो के लिए किसी सरकार द्वारा किसी आयोग की व्यवस्था नही की जिनकी  संख्या देश 60 से 70 प्रतिशत है किसान देश की अर्थव्यवस्था में भी 70 प्रतिशत हिस्से दारी रखते है फिर भी प्रत्येक सरकार द्वारा उपेक्षित हैं क्यों ?
मैं पूछता हूँ सभी सरकारी तंत्र से कि नौकरशाही की तरह किसानों की कोई व्यवस्था क्यों नही है प्रतिवर्ष किसानों को भी वृद्दि चाहिए 
परन्तु ऐसा नही हो रहा है किसानो के उत्पादन के मूल्य जस के तस है बाकी सभी वस्तुओं के मूल्य में लगातार वृद्धि हो रही है 

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