जैविक कृषि सुरक्षा

पंचगव्य

प्राचीन काल से ही भारत जैविक आधारित कृषि प्रधान देश रहा है। हमारे ग्रन्थों में भी इसका उल्लेख किया गया है। पंचगव्य का अर्थ है पंच+गव्य (गाय से प्राप्त पाँच पदार्थों का घोल) अर्थात गौमूत्र, गोबर, दूध, दही, और घी के मिश्रण से बनाये जाने वाले पदार्थ को पंचगव्य कहते हैं। प्राचीन समय में इसका उपयोग खेती की उर्वरक शक्ति को बढ़ाने के साथ पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता था।
 

स्वास्थ्य के लिए घातक कीटनाशक दवाएं

हमारे देश में जिस रफ्तार से कीटनाशक दवाओं का प्रयोग बढ़ता जा रहा है, वह एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है । फसल की उपज को कीड़ों की मार से बचाने के लिए खेतों में ऍंधा-धुंध जहर छिडकने का प्रचलन में किसान भाई एक दुसरे को पछाड़ने में लगे हुए है । यह जानकार आप भी अचम्भित हो जायेंगे की अगर कोई व्यक्ति पाँच वर्ष लगातार बैगन अथवा भिन्डी का सेवन अपने आहार में कर ले तो वो निश्चित तौर पर दमा का मरीज बन सकता है ।यहाँ तक की उसकी श्वास नलिका बंद हो सकती है ।

अरे अब तो जागो क्योकि कीटनाशक बने मानवनाशक

कीटनाशक बने मानवनाशक

अच्छेजा गाँव में बीते पाँच साल में दस लोग इस असाध्य बीमारी से असामयिक काल के गाल में समा चुके हैं। अब अच्छेजा व ऐसे ही कई गाँवों में लोग अपना रोटी-बेटी का नाता भी नहीं रखते हैं। दिल्ली से सटे पश्चिम उत्तर प्रदेश का दोआब इलाका, गंगा-यमुना नदी द्वारा सदियों से बहाकर लाई मिट्टी से विकसित हुआ था। यहाँ की मिट्टी इतनी उपजाऊ थी कि पूरे देश का पेट भरने लायक अन्न उगाने की क्षमता थी।

अरहर की फसल में कीट प्रबंधन

अरहर की फसल खेतों में तैयार हो रही है। ऐसे में किसानों को अच्छी पैदावार मिल सके इसके लिए यह बेहद ज़रूरी है अरहर को इस स्थिति में नुकसान पहुंचाने वाले कीटों से बचा लिया जाए। आइए जानते हैं कि कैसे इन कीटों से अपनी फसल को बचाया जा सकता है।

 

अरहर फसल की प्रमुख कीटें
पत्ती मोड़क एवं फली भेदक कीट अरहर की कोमल तनों एवं पत्तियों को खाती हैं। बाद में फूलों तथा फलियों को नुकसान पहुचाती हैं। ये कीट फली में छेद करके बीज को खराब कर देती है। यह कीट पत्तियां खाती हैं अरहर की फली अवस्था में यह कीट ज्यादा होती है। अरहर का खेती में इन कीटों का प्रकोप ज्यादा होता है।

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