जैविक कृषि सुरक्षा

जीवन और जमीन दोनों के लिए घातक कोराजन

 कोराजन  coragen

जहर की बाजार में किसानों को बरबादी के नए युग की शुरुआत हो गई है  किसान स्वम् अपना दुश्मन बन बैठा है चटकीले विज्ञापन की चकाचौंध में अपनी सुध बुध खो बैठा है एक ओर किसान अपनी तबाही अपने हाथ से लिख रहा है बही दूसरी ओर पैस्टीसाइड के अंधाधुंध इस्तेमाल से जहरीले होते जा रहे पर्यावरण पर भी चिंता बढती ही जा रही है किसान अधिक उत्पादन के लालच में पैस्टीसाइड  का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं । इसी कड़ी में एक नए जहर ने अपना कब्ज़ा कर किया है वह जहर है कोराजन कृषि वैज्ञानिकों ने कोराजन पेस्टीसाइड से जन एवं जमीन दोनों को ही खतरा बताया।

खाने-पीने की चीजों में मिले 12.5 फीसदी खतरनाक कीटनाशक के अंश

खाने-पीने की चीजों  खतरनाक कीटनाशक

देशभर के विभिन्न खुदरा दुकानों और थोक मंडियों से ली गई सब्जियों, फलों, दूध और खाने-पीने की अन्य चीजों में अवैध कीटनाशक के अवशेष पाए गए हैं जो स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हैं। ऑर्गेनिक आउटलेट्स से लिए गए नमूनों में भी कीटनाशकों की मौजूदगी पाई गई।

राष्ट्रीय स्तर पर एकत्र किए गए 20,618 नमूनों में से 12.50 प्रतिशत में कीटनाशकों के अवशेष मिले। ये नमूने कीटनाशक अवशेषों की निगरानी के लिए साल 2005 में शुरू की गई योजना के तहत लिए गए।

रुको कहीं आपके भोजन में मीठा जहर तो नही......

रुको कहीं आपके भोजन में मीठा जहर तो नही......

देश की एक बड़ी आबादी धीमा ज़हर खाने को मजबूर है, क्योंकि उसके पास इसके अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है. हम बात कर रहे हैं भोजन के साथ लिए जा रहे उस धीमे ज़हर की, जो सिंचाई जल और कीटनाशकों के ज़रिए अनाज, सब्ज़ियों और फलों में शामिल हो चुका है. देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में आर्सेनिक सिंचाई जल के माध्यम से फसलों को ज़हरीला बना रहा है. यहां भू-जल से सिंचित खेतों में पैदा होने वाले धान में आर्सेनिक की इतनी मात्रा पाई गई है, जो मानव शरीर को नुक़सान पहुंचाने के लिए का़फी है. इतना ही नहीं, देश में नदियों के किनारे उगाई जाने वाली फसलों में भी ज़हरीले रसायन पाए गए हैं.

अब तो बंद करो जहर की खेती

  जहर की खेती

 

हरित क्रांति के वक्त खाद्यान्न की पैदावार का संकट था इसलिए रासायनिक खाद और पेस्टिसाइड को प्रोत्साहन दिया गया। लेकिन उसके दुष्परिणामों पर वक्त रहते गौर नहीं किया गया। हरित क्रांति के अगले दस साल में ही इसका बुरा असर भी दिखने लगा था।

 

वैज्ञानिकों ने "मिड टर्म" करेक्शन नहीं किया। इन्होंने पैदावार का जो संकट आ रहा था, उसका समाधान ज्यादा से ज्यादा रासायनिक खाद ही बता डाला।

 

Pages