Aksh's blog

जब खेत नहीं रहेंगे

जब खेत नहीं रहेंगे

कृषि योग्य ज़मीन को लेकर जो आंकड़े दे रहे हैं वे भविष्य की बहुत ही भयानक तस्वीर दिखा रहे हैं। उनका कहना है कि केन्द्र और राज्य सरकारें मिलकर विगत 10 वर्षों में 21 लाख हेक्टेयर खेती लायक ज़मीन दूसरे कामों के लिए अधिग्रहीत कर चुकी है। जमीन अधिग्रहण पर सरकार की नीति वास्तव में ऐसी है कि अगले 10 वर्षों में लोगों के सामने भूखों मरने की नौबत आ सकती है। हमारे देश की लगभग 70 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है। पालेकर मानते हैं कि बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के चलते गैर कृषि कार्यों के लिए जमीन की जरूरत बढ़ी है,और सरकार इस जरूरत को पूरी करने के लिए खेती लायक ज़मीनों का अधिग्रहण कर रही है। वास्तव में आबादी उतना

रसायन खेती का अन्तिम विकल्प नही है

रसायन खेती का अन्तिम विकल्प नही है

हमारे यहाँ एक कहावत कही जाती है जान के मक्खी नही निगली जाती है हम लोग जब कोई सामान खरीद्नें जाते हैं तो उसके बारे में तमाम सवाल दुकान वाले से करते हैं जबकि वह सामान की आयु एक साल दो साल अधिक से अधिक दस बीस साल होगी । लेकिन हम अपनी जिन्दगी का सौदा बिना सोचे बिना समझे करते है जो अन्न हम खाते हैं अपने परिवार को खिलाते हैं उसमें अंधाधुंध जहर मिलाते हैं । 

प्राचीन काल में राजा-महाराजा को मारने के लिए षडयंत्रकारी लोग राजा के रसोईए से मिलकर, राजा के भोजन में धीमी गति से फैलने वाला ज़हर मिलवा देते थे । परन्तु आजकल हम सब कुछ जानते हुए भी आँखे बंद करके इस ज़हर का सेवन करते हैं । 

जीएम फसलों का खेल

जीएम फसलों का खेल

 जीएम सरसों को खेतों में उगाने की अनुमति जल्दी ही सरकार दे देगी. इसके लिये ज़रूरी फील्ड ट्रायल किये जा चुके हैं और सरकार की जैनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी से इसे हरी झंडी मिल चुकी है. अगर जीएम सरसों के खेतों में उगाई गई तो यह भारत में पहली जीएम खाद्य फसल होगी. हम आपको समझाते हैं कि क्या है जीएम फसल और क्या है इस पर चल रही बहस.

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