खाद्य सुरक्षा का वाहक बनेगा चावलः स्वामीनाथन
चावल भविष्य का खाद्यान्न है और यही खाद्य सुरक्षा का वाहक बनेगा। यह कहना है जाने-माने कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन का। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों के पास आराम करने का वक्त नहीं है।
उन्हें चावल की ऐसी किस्में विकसित करनी होंगी जो पर्यावरण में हो रहे बदलावों के अनुकूल हों और जिससे चावल का उत्पादन बढ़ सके। स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का जनक माना जाता है।
स्वामीनाथन ने कहा, "इस बात में कोई संदेह नहीं है कि 1967-68 में अंतरराष्ट्रीय चावल शोध संस्थान (आइआरआरआइ) द्वारा विकसित चावल की किस्म आइआर-8 और अन्य किस्मों ने भारत में हरित क्रांति को गति दी।
हालांकि देश में चावल का उत्पादन अब भी 3.5 टन प्रति हेक्टेयर के बेहद निचले स्तर पर है। इसे बढ़ाने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। पर्यावरण में हो रहे बदलावों के मद्देनजर गेहूं नहीं बल्कि चावल ही भविष्य का खाद्यान्न होगा। उत्पादन में तापमान की अहम भूमिका रहती है।
अगर तापमान दो डिग्री तक बढ़ा तो गेहूं का उत्पादन 60 लाख टन तक घट जाएगा।" स्वामीनाथन आइआर-8 के 50 साल पूरे होने के मौके पर आइआरआरआइ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने वैज्ञानिकों से सस्ती कृषि तकनीकें विकसित करने की भी अपील की।
हर तरह की पूजा में चावल का प्रयोग किया जाता है। कोई भी पूजा, यज्ञ आदि अनुष्ठान बिना चावल के पूर्ण नहीं हो सकता। चावल अर्थात अक्षत का मतलब जिसका क्षय नहीं हुआ है। हिन्दुओं में किसी भी शुभ कार्यों पर माथे पर रोली के साथ चावल लगाकर तिलक किया जाता है। चावल का सफेद रंग शांति का प्रतीक है । चावल पूर्णता का प्रतीक है। स्वामीनाथन जी के बक्तब्य के बारे श्री सिंह ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा उन्होंने बताया कि स्वामीनाथन जी एक अनुभाबी कृषि वैज्ञानिक हैं उन्हें भविष्य का ज्ञान है मैं उनसे पूरी तरह सहमत हूँ