छत्तीसगढ़ धनिया में स्वाद के साथ खुशबू भी
हरा धनिया की दो पत्ती सब्जी या सलाद के स्वाद को बढ़ा देती है। अब इसी स्वाद को दोगुना करने के लिए इंदिरा गांधी कृषि विवि (इंगांकृविवि) के वैज्ञानिकों ने 'छत्तीसगढ़ धनिया" विकसित किया है, जिसमें सामान्य धनिया के अपेक्षाकृत पैदावार और खुशबू कहीं ज्यादा है। गौरतलब है कि राज्य के किसान धनिया की खेती करते हैं, लेकिन बीज लगने से पहले पत्तियों को तोड़कर उपयोग कर लेते हैं या बाजार में बंडल बनाकर बेच देते हैं। ऐसे में अब 'छत्तीसगढ़ धनिया" की बोनी कर उपयोगिता के साथ-साथ बीज का संरक्षण भी कर सकेंगे।
इंगांकृविवि के अंतर्गत रायगढ़ कृषि महाविद्यालय द्वारा ईजाद की गई इस किस्म के नोटिफिकेशन के लिए भारतीय मशाला अनुसंधान परियोजना (आईआईएसआर) ,कालीकट को पत्र लिखा गया है। उम्मीद है कि यहां से सर्टिफिकेट विवि को मिले, जिसके बाद धनिया संबंधित प्लांट और रिसर्च संबंधित अन्य कार्यों को बढ़ावा मिले।
तीन साल की मेहनत रंग लाई
रायगढ़ कृषि महाविद्यालय प्लांट पैथोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर के अनुसार 'छत्तीसगढ़ धनिया" किस्म को ढूंढ़ने में 3 साल से ज्यादा का वक्त लगा। राज्य के अनेक क्षेत्रों से तीन दर्जन से ज्यादा धनिया के किस्म एकत्रित किए। फिर इनमें से सर्वश्रेष्ठ बीज को विकसित करने की योजना बनी। गौरतलब है कि इस किस्म को अनेक राज्यों में पैदावार करने के लिए भेजा गया।
लेकिन छत्तीसगढ़ को छोड़ इन राज्यों में धनिया की पैदावार ढंग से नहीं हुई। 'छत्तीसगढ़ धनिया" की ऊंचाई औसत 60 सेमी से अधिकतम 75 सेमी तक है। प्रति हेक्टेयर उत्पादन 8-10 क्विंटल के बीच है। शुरुआती तौर पर कम मात्रा में इस किस्म की बीज किसानों को दी जा रही है। इस नई किस्म को ईजाद करने में कॉलेज के रोशनी भगत और एसएस रॉव की महत्वपूर्ण भूमिका भी रही है।
बीज विकसित कर किसानों को बांटा जा सकेगा अभी अधिकांश धनिया की प्रजाति विदेशी या प्राइवेट कंपनियों की है। ऐसे में हमारा प्रयास था कि राज्य के किस्मों को चयन कर इंप्रूवमेंट किया। इसमें सफलता मिल गई है। नोटिफिकेशन के लिए आईआईएसआर को पत्र भेजे है। जिसके बाद भारी मात्रा में बीज विकसित कर किसानों को बांटा जा सकेगा।
-डॉ.एके सिंह, एसोसिएट प्रोफेसर प्लांट
पैथोलॉजी,रायगढ़ कृषि महाविद्यालय