लहसुन की खेती प्रशस्त करेगी आर्थिक उन्नति का मार्ग
बूढ़नपुर (आजमगढ़) : वर्तमान मौसम में लहसुन की खेती आर्थिक उन्नति का रास्ता तय करती है। जरूरत है तो केवल इस बात की कि खेत की निगरानी की जाए और रोग की स्थिति में उसका उपचार किया जाए। पूर्व उप संभागीय कृषि प्रसार अधिकारी लालबिहारी यादव के मुताबिक अपने देश में लहसुन की खेती का महत्वपूर्ण स्थान है। लहसुन मुख्यतया फलियों द्वारा उगाया जाता है। मैनपुरी जिले में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।
उन्होंने बताया कि एग्रीफाइड ह्वाइट, यमुना सफेद, यमुना सफेद जी 50, यमुना सफेद जी 282 आदि किस्मों से बोआई करनी चाहिए। इसकी बोआई के लिए वह भूमि ज्यादा उपयुक्त होती है जिस मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अधिक होने के साथ-साथ जल निकासी की व्यवस्था हो। इसमें दो-तीन जोताई करके खेत समतल बनाकर क्यारियों में बांट लेते हैं। इसमें प्रति हेक्टेयर की दर से 50 टन सड़ी गोबर की खाद क्यारियों में मिला लेते हैं। रोपाई के दो दिन पूर्व 200 किलोग्राम कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट या 100 किलोग्राम यूरिया, 300 किलोग्राम सुपर फास्फेट व 100 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन में मिला लेते हैं।
बोआई के एक माह बाद 200 किलोग्राम कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट या 100 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से छिटकवा विधि से मिला देना चाहिए। बीज की मात्रा कलियों के अनुसार लगभग 500 से 900 किलोग्राम कलियां एक हेक्टेयर में रोपाई के लिए पर्याप्त है। कलियों को गांठों से अलग कर बोआई की जाती है। बोते समय कतार की दूरी 10-15 सेमी. तथा कतारों में कलियों के बीच की दूरी 7.5 से 10 सेमी. रखते हैं। बोआई 5 से 6 सेमी. गहरी करते हैं। बोआई करते समय यह ध्यान रहे कि नुकीला भाग ऊपर रहे। लहसुन की जड़े गहराई तक जाती हैं। दो से तीन बार गुड़ाई कर खरपतवार को निकाल लेते हैं। जाड़े में 10-15 दिन के अंतर पर सिंचाई करते हैं तथा गर्मी के समय प्रति सप्ताह। फसल में रोग लगने पर स्थानीय कृषि वैज्ञानिक से सलाह लेनी चाहिए। बताया कि अगर कृषि वैज्ञानिक की सलाह के अनुसार खेती की जाए तो लहसुन किसानों के आर्थिक उन्नति का रास्ता भी बनाती है।
साभार जागरण