संशोधित बटाईदार कानून से आसान हो जाएगी खेती
कृषि क्षेत्र में सुधार और किसानों की आमदनी को दोगुना करने की दिशा में सरकार ने सक्रिय पहल की है। इसके लिए राज्यों से अपने भू राजस्व कानून में संशोधन का आग्रह किया गया है, ताकि किसानों के हित में चलाई गई योजनाओं का लाभ उन्हें मिल सके। केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को मध्य प्रदेश के संशोधित विधेयक का मसौदा भेजा है। इससे खेती की मुश्किलें आसान हो जाएंगी।
लगातार छोटी होती जोत, बढ़ता घाटा और खेती पेशा से घटते मोह की वजह से बटाईदार प्रथा बढ़ी है। कानूनी प्रावधान न होने की वजह से ज्यादातर लोग अपने खेत परती छोड़ देते हैं। बटाईदारों को खेतिहर का दरजा नहीं मिल पाना कृषि क्षेत्र में सुधार की सबसे बड़ी चुनौती है। बटाईदारों को न बैंक ऋण मिल पाता है और न ही फसल बीमा का मुआवजा।
"मध्य प्रदेश भूमि स्वामी एवं बटाईदार हितों का संरक्षण विधेयक 2106" को केंद्र सरकार ने मॉडल कानून का दरजा देते हुए सभी राज्यों को भेजकर उसके अनुरूप अपने भूमि राजस्व कानून में संशोधन की हिदायत दी है। इसके मसौदे में तीन पक्षकारों का प्रावधान है, जिनमें भूस्वामी, बटाईदार और सरकारी अधिकारी शामिल हैं। इनके बीच होने वाले अनुबंध का किसी भी राजस्व भूलेख में जिक्र नहीं किया जाएगा।
अनुबंध की अधिकतम अवधि पांच साल की होगी, जिसमें बटाईदार से भूमि स्वामी को मिलने वाली राशि का फैसला दोनों पक्षों की सहमति से साल दर साल बढ़ते हुए क्रम में हो सकता है। अनुबंध की जमीन का उपयोग केवल खेती अथवा इससे जुड़े कार्यों में ही किया जा सकता है। अनुबंध के प्रावधानों की अवहेलना करने पर बटाईदार से जमीन स्वतः वापस मानी जाएगी। फसल खराब होने की दशा में बीमा का मुआवजा जमीन मालिक और बटाईदार के आपसी अनुबंध के अनुसार देय होगा।
अनुबंध अवधि के दौरान बटाईदार की मौत होने पर उसका अधिकार उसके विधिक उत्तराधिकारी को प्राप्त होगा, लेकिन वह उससे हट भी सकता है। दोनों पक्षों के बीच किसी तरह का विवाद होने पर निपटाने का अधिकार तहसीलदार को होगा। निर्धारित समय समाप्त होते ही जमीन से बटाईदार का अधिकार अपने आप समाप्त हो जाएगा।