जल प्रदूषण/जल संकट
“जल (H2O) में सामान्यतः कुछ लाभाकरी खनिज लवण संतुलित आहार के कुछ अंश के रूप में विद्यमान रहते हैं, परंतु इसमें जहरीले रसायनों, कीटाणुओं, अस्वच्छता आदि की उपस्थिति ही जल प्रदूषण है।”
पृथ्वी पर लगभग 70 प्रतिशत पानी है जिसका 3 प्रतिशत ही पेय रूप में है, बाकी अपेय/अशुद्ध है। इस 3 प्रतिशत पेयजल का लगभग 90 प्रतिशत से भी अधिक भाग भूगर्भ जल के रूप में है, जिसका जल-स्तर अधिकाधिक और अविवेकपूर्ण दोहन, अपव्यय और संरक्षणहीनता और अपुन्रभरण के कारण खतरनाक रूप से घट रहा है और मोटरपंपों, ट्यूबवेलों से निकाला गया भूगर्भ जल तेजी से प्रदूषित हो रहा है।
नदी, तालाबों, झीलों आदि का भी जल निम्न कारणों से तेजी से प्रदूषित हो रहा है-
1. औद्योगिक कचरा – उद्योगों के खतरनाक विषैले रसायनों से युक्त अपशिष्ट पादर्थ बड़े पैमाने पर जल प्रदूषण फैला रहे हैं।
2. घरेलू कचरा/दिनचर्या – हम जाने अनजाने रोज सैकड़ों लीटर शुद्ध जल को अशुद्ध बनाते हैं, जैसे-फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट द्वारा, साबुन-सोडा, शैंपु, द्वारा सेप्टिक टैंक द्वारा, डिटरजेंट द्वारा, रंजकों, द्वारा, कृषि-कार्य में प्रयुक्त कीटनाशकों, खरपतवार नाशकों आदि के द्वारा।
जल प्रदूषण के दुष्प्रभाव –
जल प्रदूषण के निम्न प्रकार हैं-
1. प्रदूषित जल के सेवन से डायरिया, पेचिश, टायफाइड, पीलिया, टी.बी. आंत्ररोग, श्वसन रोग आदि उत्पन्न होते हैं। फ्लोराइडयुक्त जल के सेवन से हड्डियां विशेषकर पैरों की हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं। सीसा आदि की उपस्थिति से असमय बुढ़ापा और मौत की स्थितियां बनती हैं।
2. जल संकट।
3. वनस्पति क्षय।
4. भू-उर्वरता में कमी।
5. जीव विलुप्तिकरण।
Author: स्वराज तिवारी
Source: पर्यावरण विमर्श