हींग की खेती

हींग की खपत हमारे देश में लगभग 40 प्रतिशत है. यह शायद थोड़ी अजीब भी है की जिस देश में हींग की खपत इतनी ज्यादा है उस देश में इसकी खेती नहीं होती और इसे दूसरे देश से आयात करना पड़ता है. वहीं हींग का बाजार भाव 35000 रुपए प्रति किलो ग्राम है.

इन देशों में होती है हींग की खेती

हिंग एक सौंफ प्रजाति का पौधा है और इसकी लम्बाई 1 से 1.5 मीटर तक होती है. इसकी खेती जिन देशों में प्रमुख तौर पर होती हैं वो है अफगानिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान और ब्लूचिस्तान. कब और कहां कर सकते हैं

 

हींग की खेती

 

जल ,जंगल और जमीन को लेकर हो सकता है तीसरा विश्व युद्ध

जल ,जंगल और जमीन को लेकर हो सकता है तीसरा विश्व युद्ध

जल ,जंगल और जमीन को लेकर हो सकता है तीसरा विश्व युद्ध ऐसे कयास बहुत ही दिनों से लगाये जा रहे हैं लेकिन कब होगा ऐसा निश्चित रूप में कह पाना मुश्किल है।केपटाउन में पानी खत्म हो ने के बाद यह सत्य होता नजर आ रहा है कि 2040 के लगभग जब दुनिया के अधिकतर बड़े शहरों में पानी खत्म हो जाएगा और इस दौड़ में भारत के भी बहुत से शहर गिनती में हैं।

जैविक कीटनाशक अपनाकर पानी प्रदूषण से बचाएं

जैविक कीटनाशक अपनाकर पानी प्रदूषण से बचाएं

विकास की अंधी दौड़ में हमने अपनी परम्परागत खेती को छोड़कर आधुनिक कही जाने वाली खेती को अपनाया। हमारे बीज- हमारी खाद- हमारे जानवर सबको छोड़ हमने अपनाये उन्नत कहे जाने वाले बीज, रसायनिक खाद और तथाकथित उन्नत नस्ल के जानवर। नतीजा, स्वावलम्बी और आत्मनिर्भर किसान खाद, बीज, दवाई बेचने वालों से लेकर पानी बेचने वालों और कर्जा बांटने वालों तक के चँगुल में फंस गये। यहां तक की उन्नत खेती और कर्ज के चंगुल में फँसे कई किसान आत्म हत्या करने तक मजबूर हो गये । खेती में लगने वाले लागत और होने वाला लाभ भी बड़ा सवाल है, किन्तु खेती केवल और केवल लागत और लाभ ही नहीं है हमारे समाज और बच्चों का पोषण, मिट्टी की गुण

कृषि अपशिष्ट के कार्बनिक पदार्थ को जलाने से हवा जहरीली

 कृषि अपशिष्ट के कार्बनिक पदार्थ को  जलाने से हवा जहरीली

सर्दियां शुरू होने के साथ ही उत्तर भारत को अकसर हर साल भारी परेशानी उठानी पड़ती है क्योंकि 20 करोड़ से ज्यादा निवासियों वाले इस क्षेत्र की हवा जहरीली हो जाती है. हवा में घुले इस जहर की वजहों की बात आती है तो अक्सर उंगलियां उन हाथों की ओर उठती हैं, जो देशभर के लोगों का पेट भरते हैं.
देश का अन्न भंडार कहलाने वाले क्षेत्र के किसानों को कृर्षि अपशिष्ट खेतों में न जलाने के लिए कहा जाता है क्योंकि इससे नयी दिल्ली, लखनऊ और इलाहाबाद जैसे बड़े शहरों की हवा दूषित हो जाती है.

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