नीलगायों के आतंक से छोड़ी खेती

दर्जनों गाँवों में कुछ किसानों ने खेती छोड़ी है तो कुछ ने मक्का, गन्ना और दहलनी फसलों को बोना बंद कर दिया है। गाँवों के अधिकतर किसान अब गेहूं, धान के अलावा मेंथा की खेती करते हैं जिसमें नीलगाय कम से कम नुकसान करती हैं, जबकि कुछ ने खेती को बटाई या ठेके पर देकर दूसरा व्यवसाय चुन लिया है।

नीलगायों के आतंक के खिलाफ यहां के किसान कई बार आवाज भी उठा चुके हैं। किसान नेता सरमेल सिंह गांधी बताते हैं, ”नीलगायों के डर से क्षेत्र के कई किसानों ने मटर, चना सहित तमाम फसलों को बोना ही छोड़ दिया है। अब वही किसान ये फसलें ले पाता है जिसके पास तार की बाड़ लगवाने की क्षमता है।” वो आगे बताते हैं, ”नीलगायों से सबसे ज्यादा नुकसान छोटे किसानों को होता है।”

नीलगाय से हो रही फसलों की बर्बादी और इनकी बढ़ती संख्या को बड़ी समस्या बताते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्य वन संरक्षक डॉ रुपक डे बताते हैं, ”उत्तर प्रदेश ही नहीं राजस्थानए बिहार, और हरियाणा समेत कई राज्यों में नीलगाय किसानों को नुकसान पहुंचा रही हैं।

सरकार ने लाइसेंसी हथियारों से नीलगायों को मारने की छूट भी दी है। इसके लिए शासनादेश भी जारी किया गया है।” हालांकि किसानों का कहना है सरकार ने मारने की इजाजत दी है लेकिन इसमें कई पेंच हैं, जिसके चलते किसान कानूनी पचड़े में फसना नहीं चाहता है।

वनरोज को मारने में हैं अड़चनें
वनरोज या नीलगाय को मारने में व्यवहारिक अड़चने हैं इसे अधिकारी भी मानते हैं। बाराबंकी जिले के जिलाधिकारी राजेश्वर राम मिश्र कहते हैं नीलगाय काफी नुकसान करती है। प्रशासन इनकी संख्या पर लगाम लगाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि वो यह भी मानते हैं गाय का नाम जुड़ा होने के चलते किसान इन्हें मारने से कतराते हैं।

वहीं बुंदेलखंड में झांसी और चित्रकूट के पूर्व जिलाधिकारी रह चुके जगन्नाथ सिंह अपने ब्लॉग अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम में लिखते हैं कि सरकार ने अनुमति दो दीए लेकिन उसकी शर्ते कठिन हैं जैसे किसान को बताना होता है कैसे वनरोज उसकी फसल को नुकसान पहुंचा चुका है या पहुंचाने वाला है। कानूनी पेंचों से बचने के लिए किसान अनुमति ही नहीं लेता है। वो आगे लिखते हैं जिलाधिकारी चित्रकूट रहते हुए मैने किसानों को बिना अनुमति वनरोज मारने की अनुमति दी थी। बशर्ते वह मारने के 24 घंटे के भीतर बीडीओ या उपजिलाधिकारी को इस बारे में सूचना दे दे। अगर सरकार के आदेश में ही इस प्रकार की व्यावहारिकता का समावेश हो जाता तो शासन के आदेश की मंशा तो पूरी ही हो जाती और किसानों की फल भी बच जाती।

नीलगाय में गाय का नाम जुड़ा होने के चलते पिछले दिनों राजस्थान सरकार भी ऊहापोह में रही थी कि किसानों की अनुमति दी जाये कि नहीं।

साभार : गॉव कनेक्शन