फव्वारा सिंचाई से पानी की बर्बादी कम

देश भर पारंपरिक तौर पर होने वाले कृषि कार्यों में बहुत अधिक जल बर्बात होता है जिसे उन्नत सिंचाई प्रणालियों के प्रयोग से कम किया जा सकता है। ऐसी ही एक प्रणाली है फव्वारा सिंचाई या बौछारी सिंचाई प्रणाली इसके प्रयोग से किसान 30 से 50 प्रतिशत तक पानी का अपव्यय बचाया जा सकता है।
बौछारी सिंचाई का तरीका
* बौछारी या फव्वारा सिंचाई वह विधि है जिसमें सिंचाई जल को पम्प करके पाइप की सहायता से छिड़कने के स्थल तक ले जाया जाता है तथा दबाव द्वारा फुहारों या वर्षा की बूदों के समान सीधे फसल पर छिड़का जाता है। इसमें खेतों में पाइप लाइन लगाकर फौव्वारे लगा दिये जाते हैं जिनसे छिड़काव द्वारा पानी खेतों में चारों तरफ  फैलता है। इस विधि में प्रारंभिक व्यय अधिक आता है किंतु यह विधि असमतल एवं अधिक पानी सोखने वाली भूमियों तथा सिंचाई जल की कमी वाले स्थानों के लिए विशेष उपयोगी है। सतही सिंचाई की तुलना में इस विधि से 25 से 50 प्रतिशत जल की बचत होती है। आजकल केंद्रीय और राज्य सरकारें फौव्वारा सिंचाई सयंत्र पर कृषकों को सब्सिडी भी दे रही हैं।

जरूरी संयंत्र
* फव्वारा सिंचाई प्रणाली में पम्प, मुख्य पाइप, सहायक पाइप, पाश्र्व पाइप लाइन व स्प्रिंकलर मुख्य भाग होते हैं। इस सिंचाई प्रणाली के संचालन के लिए कम गहरे स्थानों (8 मीटर से कम) से पानी उठाने के लिए सेंट्रीफ्यूगल पंप तथा अधिक गहरे स्थानों से पानी उठाने के लिए टर्बाइन पंप का प्रयोग करते हैं। पम्प को चलाने के लिए डीज़ल इंजन अथवा बिजली की मोटर का उपयोग किया जाता है।

फव्वारा सिंचाई से लाभ
* पम्प सेट या नहर से सिंचाई करने पर खेत तक पहुंचने में क्रमश: 15-20 फीसद से 30-50 फीसद पानी बेकार हो जाता है, जबकि बौछारी सिंचाई से इतने ही बहुमूल्य जल की बचत होती है।
* जिन क्षेत्रों की भूमि ऊंची-नीची रहती है वहां पर सतही सिंचाई संभव नहीं हो पाती, अत: उन जगहों पर बौछारी सिंचाई वरदान साबित होती है।
* इस विधि में पानी के साथ घुलनशील उर्वरक कीटनाशी तथा खरपतवारनाशी दवाओं का भी प्रयोग छिड़काव के साथ ही आसानी से किया जा सकता है।
* पाला पडऩे से पहले बौछारी सिंचाई करने पर तापमान बढ़ जाने से फसल को पाले से नुकसान नहीं होता है।
* पानी की कमी और सीमित पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में दोगुना से तीन गुना अधिक क्षेत्रफल सतही सिंचाई की अपेक्षा कवर किया जा सकता है।
* सिंचाई के लिए नाली, मेड़ के बनाने व उनके रख-रखाव की जरूरत नहीं पड़ती है। इस प्रकार कृषि भूमि, श्रम व व्यय की बचत होती है।

फव्वारा सिंचाई की सीमाएं

� अधिक हवा होने पर पानी का वितरण समान नहीं रह पाता है।
� पके हुए फलों को फुहारे से बचाना चहिए।
� पद्धति के सही उपयोग के लिए लगातार जलापूर्ति की आवश्यकता होती है।
� पानी साफ हो, उसमें रेत, कूड़ा करकट न हो और पानी खारा नहीं होना चाहिए। 
� इस पद्धति को चलाने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। � चिकनी मिट्टी और गर्म हवा वाले क्षेत्रों में इस पद्धति के द्वारा सिंचाई नहीं की जा सकती। 
 

उपयुक्तता

यह विधि सभी प्रकार की फसलों की सिंचाई के लिए उपयुक्त है। कपास, मूंगफली तम्बाकू, कॉफी, चाय, इलायची, गेहूँ व चना आदि फसलों के लिए यह विधि अधिक लाभदायक हैं। 
यह विधि बलुई मिट्टी, उथली मिट्टी ऊंची-नीची जमीन, मिट्टी के कटाव की समस्या वाली जमीन तथा जहां पानी की उपलब्धता कम हो, वहां अधिक उपयोगी है। 

छिड़काव सिंचाई पद्धति की अभिकल्पना एवं रूपरेखा के लिए सामान्य नियम

� पानी का स्त्रोत सिंचित क्षेत्रफल के मध्य में स्थित होनी चाहिए जिससे कि कम से कम पानी खर्च हो।
� ढलाऊ भूमि पर मुख्य नाली ढलान की दिशा में स्थित होनी चाहिए।
� पद्धति की अभिकल्पना और रूप रेखा इस प्रकार होनी चाहिए जिससे कि दूसरे कृषि कार्यों में बाधा न पड़े।
� असमतल भूमि में अभिकल्पित जल वितरण पूरे क्षेत्रफल पर समान रहना चाहिए, अन्यथा फसल वृद्धि असमान ही रहेगी।