जैविक कृषि सुरक्षा

धान की फसल लहराएगी लेकिन खरपतवार पर नियंत्रण जरूरी

देश की बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ खाद्यानों की मांग को पूरा करना एक गंभीर चुनौती बनी हुई है. धान हमारे देश की प्रमुख खाद्यान फसल है. इसकी खेती विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में लगभग चार करोड़ 22 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है आजकल धान का उत्पादन लगभग नौ करोड़ टन तक पहुंच गया है . राष्ट्रीय स्तर पर धान कीऔसत पैदावार 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. जो कि इसकी क्षमता से काफ़ी कम है, इसके प्रमुख कारण है –  कीट एवं रोगों,  बीज की गुणवत्ता,  गलत शस्य क्रि याएं  तथा खरपतवार.

मृदा अपरदन एवं कारण

मिट्टी एक अमूल्य प्राकृतिक संसाधन है, जिस पर संपूर्ण प्राणि जगत निर्भर है । भारत जैसे कृषि प्रधान देश में; जहाँ मृदा अपरदन की गंभीर समस्या है मृदा अपरदन की प्रक्रिया में मृदा की उपरी सतह टूट जाती है और एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच जाती है| भूक्षरण या मृदा-अपरदन का अर्थ है मृदा कणों का बाह्‌य कारकों जैसे वायु, जल या गुरूत्वीय-खिंचाव द्वारा पृथक होकर बह जाना। वायु द्वारा भूक्षरण मुख्यतः रेगिस्तानी क्षेत्रों में होता है, जहाँ वर्षा की कमी तथा हवा की गति अधिक होती है, परन्तु जल तथा गुरूत्वीय बल द्वारा भूक्षरण पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक होता है। जल द्वारा भूक्षरण के दो मुख्य

औषधीय फसल सफेद मूसली की खेती

सफेद मूसली की औषधीय लाभकारी खेती
सफेद मूसली एक बहुत ही उपयोगी पौधा है, जो कुदरती तौर पर बरसात के मौसम में जंगल में उगता है. सफेद मूसली की जड़ों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक और यूनानी दवाएं बनाने में किया जाता है. खासतौर पर इस का इस्तेमाल सेक्स कूवत बढ़ाने वाली दवा के तौर पर किया जाता है. सफेद मूसली की सूखी जड़ों का इस्तेमाल यौवनवर्धक, शक्तिवर्धक और वीर्यवर्धक दवाएं बनाने में करते हैं. इस की इसी खासीयत के चलते इस की मांग पूरे साल खूब बनी रहती है, जिस का अच्छा दाम भी मिलता है.

जायद में दलहन की फसल लाभकारी सौदा

जायद में दलहन की फसल लाभकारी सौदा 
दलहनी का उत्पादन लगातार घटने से इनकी कीमतोे में आग लगी है। दाल गरीबों की थाली से दूर हो चुकी है। एसे में जायद की फसल उगाकर इस आग को बुझाया जा सकता है। रबी फसलों की कटाई फरवरी माह से शुरू होकर अप्रैल तक चलती रहती है और सभी खेत खाली पड़े रहते हैं। जायद ऋतु में दिन 12-13 घंटे का होने से दलहनी फसलों में ज्यादा भोजन बनता है जिससे फसल अवधि 70 से 80 दिन मात्र ही होती है। कम अवधि होने से उत्पादन लागत कम होने के साथ कीट व्याधि व जानवरों से नुकसान की संभावना भी कम हो जाती है और भरपूर उत्पादन मिलता है। 
खेत की तैयारी

Pages