सूखे से देश में गरीबी का संकट गहराने का खतरा
देश के ग्रामीण इलाकों के लाखों लोगों को गरीबी से निकालने और राज्यसभा में बहुमत हासिल करने के प्रधानमंत्री मोदी के मिशन पर सूखा पानी फेर सकता है। एक दशक में पहली बार इस वित्त वर्ष में भारत के कृषि सेक्टर में भारी गिरावट आने की संभावना है।
एक अनुमान के अनुसार भारत के कई हिस्से सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर रहते हैं लेकिन इस साल सिर्फ 88 फीसदी बारिश होने की भविष्यवाणी की गई है जिससे किसानों को सूखे जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।
किसान पहले ही इस साल के शुरू में बेमौसम बारिश का शिकार हो चुके हैं और साल के अंत में बारिश कम होने के कारण नुकसान की स्थिति में रहेंगे।
2009/10 में जब पिछली बार सूखा पड़ा था तो उस समय कृषि अर्थव्यवस्था करीब 1 फीसदी बढ़ी थी। थिंक टैंक आरपीजी फाउंडेशन के डी.एच.पाई पनांदिकर समेत कई प्राइवेट अर्थशास्त्री का कहना है कि इस साल अप्रैल से वित्त वर्ष में करीब 4 फीसदी की गिरावट आएगी जो 2002/03 से पहली बार इतनी भारी गिरावट है। इस तरह की गिरावट से समग्र वृद्धि दर 7.3 फीसदी के नीचे रहेगी जिससे ग्रामीण इलाकों में ज्यादा लोग गरीबी के जाल में फंस जाएंगे। आर.बी.आई. ने भी इस साल 7.6 फीसदी वृद्धि दर रहने का अनुमान जताया है और 7.8 फीसदी की अपनी भविष्यवाणी में कमी की है।
देर से शुरू होने के बाद मानसूनी वर्षा ने अब रफ्तार पकड़ लिया है लेकिन छोटे पैमाने के किसान काफी मुश्किल का सामना कर रहे हैं।
सूखे जैसी स्थिति से ग्रामीण इलाकों में गरीबी का बढ़ना सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लिए भी नुकसान की बात है। इस साल कृषि प्रधान राज्य बिहार और पश्चिम बंगाल में चुनाव होने जा रहा है जहां बीजेपी जीत हासिल करना चाह रही है। इन राज्यों में भाजपा की जीत इसलिए भी जरूरी है ताकि राज्य सभा में मोदी सरकार को बहुमत हासिल हो सके क्योंकि राज्य सभा के सदस्यों के निर्वाचन में राज्य के विधायकों की अहम भूमिका होती है। राज्यसभा में बहुमत के न होने से मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण जैसे कई सुधारों को लागू नहीं कर पा रही है।
पंजाब केसरी