किसानों की यूरिया का हक मार रहे तस्कर
बेहद लचर वितरण प्रणाली और कालाबाजारी इस कमी को उस मुकाम पर ले जाती है जहां किसान या तो कराह उठता है या फिर हल की जगह डंडे और लाठियां उठा लेता है. ऊपर जो चार वाकये पेश किए गए हैं, दरअसल यह पूरे उत्तर और मध्य भारत के लाखों किसानों की हर रोज एक बोरी यूरिया पाने की जद्दोजहद की बहुत छोटी-सी झलक भर हैं.
उर्वरकों के उपयोग और पूर्ति पर देश भर में नज़र रखने वाले केंद्रीय मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार यूरिया समेत अन्य उर्वरकों की तस्करी के मामलों में उत्तर प्रदेश राज्य पूरे देश में अव्वल है।
कैमिकल्स और फर्टिलाइज़र मंत्रालय ने 2007-08 से 2015-16 के बीच राज्यों से आई रिपोर्टों के आधार पर आंकड़े जारी किये, जिनके अनुसार यूरिया व अन्य उर्वरकों की तस्करी के मामले में देश में सबसे ज्यादा 79 मामले उत्तर प्रदेश से रिपोर्ट किए गए। दूसरे नंबर पर हरियाणा (14 मामले) और तीसरे पर बिहार (10 मामले) रहा।
देश भर में हर साल सरकार द्वारा दी जाने वाली 75000 करोड़ रुपए की यूरिया की सब्सिडी में से सबसे ज्यादा तस्करी यूपी में, कालाबाज़ारी में बिहार अव्वल
हालांकि ये आंकड़े केवल उन्हीं घटनाओं पर आधारित हैं जिनको रिपोर्ट किया गया। मुख्यालयों से मीलों दूर बसे गाँवों में पहुंचने वाली सरकारी यूरिया या उर्वरक पर नज़र रखने की प्रणाली अभी तक सरकारों के पास नहीं हैं। गाँवों की इन्हीं पगडंडियों से शुरु होती है करोड़ों की सब्सिडी के साथ आने वाले इन उर्वरकों की कालाबाज़ारी और तस्करी।
यूपी के सैकड़ों किसानों के नेटवर्क के संयोजक विकास तोमर ने गाँव कनेक्शन को बताया कि नेपाल बॉर्डर से लगे ज़िलों से सबसे ज्यादा तस्करी होती है। "लखीमपुर-खीरी, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनग और महाराजगंज वाली जो बेल्ट है वो सबसे ज्यादा संवेदनशील है यूरिया की तस्करी के लिए। वहां तो इस तरह का है कि आदमी साइकिल पर ले जाकर नेपाल में दे आता है," तोमर ने कहा।
ऐसे समय में जब केंद्र सरकार देश के बजट पर भारी-भरकम सब्सिडी के बोझ को कम करने की कवायद में लीकेज पर लगाम लगाने में भिड़ी है, उसका ध्यान देश की 70,000 करोड़ रुपए की यूरिया एवं उर्वरकों की सब्सिडी पर भी जाना ज़रूरी है, जो कालाबाज़ारी से लेकर तस्करी के ज़रिए चुराई जा रही है।
नीम कोटेड यूरिया भी नहीं रोक पाया कालाबाज़ारी
सरकार ने यूरिया की तस्करी या कालाबाज़ारी को रोकने के लिए नीम-कोटेड यूरिया का उपाय निकाला। इस यूरिया का खेती के अलावा कोई भी और औद्योगिक इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। जानकारों के अनुसार नीम कोटेड यूरिया का उपाय भी फेल है क्योंकि सरकारें ज़मीनी स्तर के खेलों को नहीं समझतीं।
केंद्र सरकार की कृषि विज्ञान केंद्र की योजना के तहत सीतापुर के केवीके में तैनात डॉ दया श्रीवास्तव बताते हैं, "नीम कोटेड यूरिया से भले ही औद्योगिक इस्तेमाल रुक जाए लेकिन कालाबाज़ारी कैसे रोकेंगे? इस धंधे के बड़े-बड़े मास्टर माइंड यूरिया उतरते ही उसकी जमाखोरी करके रेट बढ़ाने लगते हैं, बाद में कालाबाजारी करते हैं"। डॉ दया के अनुसार मॉनिटरिंग केवल मुख्यालय के स्तर पर ही सीमित है, जिला या गाँव में इस पर नज़र रखने वाला कोई नहीं।
ज़िलास्तर के डीलरों का डाटा नहीं उपलब्ध
यूरिया या किसी उर्वरक की कालाबाजारी के फलने-फूलने का सबसे बड़ा कारण ये भी है कि जो डीलर यूरिया या उर्वरक बेच रहा है उसकी जानकारी कहीं भी ऑनलाइन उपलब्ध नहीं है। डॉ दया बताते हैं, "जो जानकारी केंद्र की वेबसाइटों पर उपलब्ध है भी वो पुरानी है"।
डॉ दया के अनुसार सबसे मूलभूत ज़रूरत ये है कि सारे डीलरों से लेकर कितनी यूरिया या उर्वरक किस जि़ले में आई उसका जानकारी ऑनलाइन दर्ज की जाए। फिर अगला चरण ये है कि किसान के रजिस्ट्रेशन के साथ ही इसे जोड़ दिया जाए। ताकि जब किसान यूरिया खरीदने आये तो उसकी खसरा-खतौनी पर चढ़ी ज़मीन के आधार पर ही उसे यूरिया दी जाए। इससे पता तो चल पाएगा यूरिया किसान के पास जा भी पा रही है या नहीं।
यूरिया समेत उर्वरकों के तस्करी के राज्यवार मामले
उत्तर प्रदेश 79
हरियाणा 14
बिहार 10
यूरिया समेत उर्वरकों के कालाबाज़ारी के राज्यवार मामले
बिहार 531
आंध्र प्रदेश 94
राजस्थान 33
साभार गॉव कनेक्शन