उन्नत कृषि और खुशहाली के लिए किसानों को बनना होगा एग्रोप्रेन्योर!
Submitted by Aksh on 30 March, 2015 - 01:57आजादी के बाद किसानों की एक बड़ी आस थी कि अब उनके दिन सुधर जाएंगें। जो कुछ किसानों के पास था अपना पुराने खेती के औजार, पुरानी खेती के तौर तरीके, पुराने देशी नस्ल के गाय- बैल, भैंस, बकरी, सादगी से भरपूर रहन-सहन और आपसी भाई-चारा। क्या उमंग, क्या जोश था।
गांवों की आबो-हवा, तालाब, हरे भरे पेड़-पौधों वाला सुनहरा मंजर मानों यूं बयां कर रहा हो कि – ‘‘चारों ओर ताल तलैया, घर बगिया की छांव हो, स्वर्ण सा सुन्दर लागे भइया आपन गांव-गिराव हो।’’ ये साबित करता है कि उन दिनों गांवों में एक अजीब ही रिश्ता और माहौल हुआ करता था।