मई माह में फसल उत्पादन हेतु सामयिक सलाह

1- गेहूँ की देर से बोयी जाने वाली प्रजातियों तथा जई की कटाई, मड़ाई, सफाई करके अच्छी तरह सुखाकर भंडारण करें। बीज के लिये रक्खे जाने वाले गेहूँ को सौर ताप विधि से उपचारित कर भंडारण करें।

2- जौं, चना, मटर, मसूर आदि को अच्छी तरह सुखाकर भंडारित करें।

3- उर्द व मूँग की आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई, सिंचाई करते रहें। मूँग की फलियों की समय से तुड़ाई करें। समय से बोयी गई उर्द की उचित समय पर कटाई करें।

आड़ू की फसल से अधिक लाभ कैसे लें

किसान साथियों इस समय बरेली क्षेत्र में आड़ू के पेड़ों के ऊपर फल पक रहे हैं । बरेली जनपद में आम, अमरूद, व लीची के बाद आड़ू चौथी प्रमुख बागानी फसल है। वैसे तो आड़ू पर्वतीय क्षेत्र की मुख्य फसल है । लेकिन इसकी कुछ प्रजातियां समशीतोष्ण जलवायु, जैसे पंजाब से लेकर तराई भाभर, उत्तरी उत्तर प्रदेश व बिहार तक सफलतापूर्वक की जाती है। आड़ू एक बहुत ही स्वास्थ्य वर्धक फल है। आडू पेट के कीड़ों के लिए भी बहुत मुफीद माना गया है। विशेष रूप से कच्चा आड़ू सुबह-सुबह निहार मुंह खाने से पेट के कीड़े निकलने मे सहायता मिलती है। इससे अनेक उत्पाद भी बनाए जाते हैं। जैसे जैम, मार्मलेड, जैली, आडू का शरबत, जूस आदि।

सेम की व्यावसायिक खेती

सेम सब्जियों के अंतर्गत रोहिलखंड क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण फसल है। यहां लगभग 15500 हेक्टेयर क्षेत्रफल में सेम की खेती सफलतापूर्वक की जाती है। सब्जियों में सेम एक दलहनी सब्जी के अंतर्गत आती है, इसलिए पोषण के दृष्टिकोण से बाजार में इसकी बहुत मांग है। सेम की खेती यदि व्यावसायिक रूप से, व वैज्ञानिक विधि से की जाए तो एक तरफ जहां प्रति इकाई क्षेत्रफल में लागत कम आती है, वही दूसरी तरफ कीट बीमारी प्रबंधन के एकीकृत तकनीकों को अपनाकर कृषक अपनी लागत कम करके आय में अधिक वृद्धि कर सकते हैं। साथ ही जो उत्पाद बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध होगा वह खाने के लिए सुरक्षित होगा। सेम लगाने के लिए ऐसी जगह का चुना

उर्द की वैज्ञानिक खेती

दलहनी फसलों में उर्द की खेती कई प्रकार से लाभकारी है। शाकाहारी भोजन में उर्द प्रोटीन का एक प्रमुख स्रोत होने के साथ-साथ फली तोड़ने के पश्चात खेत में पलट देने पर हरी खाद का लाभ भी देती है। उर्द से विभिन्न प्रकार के पकवान बनाने के साथ-साथ इसे बड़ी के रूप में संरक्षित कर ऐसे समय में प्रयोग किया जा सकता है जब घर में अन्य कोई सब्जी उपलब्ध न हो। इसकी चूनी तथा फसल अवशेष को पशु आहार के रूप में प्रयोग किया जाता है।

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