Aksh's blog

कृषि क्षेत्र में गोबर व गोमूत्र का आर्थिक महत्त्व

कृषि क्षेत्र में गोबर व गोमूत्र का आर्थिक महत्त्व

वास्तविकता यह है कि भारतीय प्राचीन ग्रन्थों के रचनाकार स्वयं में महान दूरदर्शी वैज्ञानिक थे। अपने ज्ञान के आधार पर उन्होंने सामान्य व साधारण नियम-कानून एक धार्मिक क्रिया के रूप में समाज के सामने प्रस्तुत किये ताकि मानव समाज पीढ़ी-दर-पीढ़ी उनके वैज्ञानिक ज्ञान व अनुभवों का लाभ उठते हुए प्राकृतिक पर्यावरण को बिना हानि पहुँचाए एक स्वस्थ जीवन बिता सके।

गाय को भारत में ‘माता’ का स्थान प्राप्त है। भारत के कई प्राचीन ग्रन्थों में अनेक स्थानों पर पढ़ने को मिलता है कि ‘गोबर में लक्ष्मीजी का वास होता है’। यह कथन मात्र ‘शास्त्र’ वचन नहीं है यह एक वैज्ञानिक सत्य है।

भारत की जैव विविधता

भारत की जैव विविधता

विश्व के बारह चिन्हित मेगा बायोडाइवर्सिटी केन्द्रों में से भारत एक है। विश्व के 18 चिन्हित बायोलाजिकल हाट स्पाट में से भारत में दो पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाट हैं। देश में 45 हजार से अधिक वानस्पतिक प्रजातियाँ अनुमानित हैं, जो समूची दुनियॉ की पादप प्रजातियों का 7 फीसदी हैं। इन्हें 15 हजार पुष्पीय पौधों सहित कई वर्गिकीय प्रभागों में बांटा जाता है। करीब 64 जिम्नोस्पर्म 2843 ब्रायोफाइट, 1012 टेरिडोफाइट, 1040 लाइकेन, 12480 एल्गी तथा 23 हजार फंजाई की प्रजातियाँ लोवर प्लांट के अंतर्गत् अनुमानित हैं। पुष्पीय पौधों की करीब 4900 प्रजाति भारत देश की स्थानिक हैं। करीब 1500 प्रजातियाँ विभिन्न स्तर के ख

रासायनिक खाद बर्बादी का कारण

रासायनिक खाद बर्बादी का कारण

भारत एक कृषि प्रधान देश है | प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकूल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी। जिससे जैविक और अजैविक पदार्थाें के बीच आदान-प्रदान का चक्र निरन्तर चलता रहा था। जिसके फलस्वरूप जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूशित नहीं होता था। आज भी भारत की 70 प्रतिशत जनता कृषि पर निर्भर है तथा कृषि देश की अर्थव्यवस्था का प्रमुख साधन है | भारत की अधिकतर जनसंख्या गावों में रहती है, जहाँ अनेक प्रकार के खाद्यान्नों का उत्पादन किया जाता है | भोजन मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है | अत: खाद्यान्नों का सीधा सम्बन्ध जनसंख्या से है | भारत की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है | इस प्रका

किसान आज भी गुलाम

 किसान आज भी गुलाम

प्रथम विश्व युद्ध के समय केन नामक पाश्चात्य अर्थशास्त्री ने विकास की नई अवधारणा प्रस्तुत की जिसके अनुसार, कृषि को अर्थव्यवस्था के मूलाधार होने को नकारते हुए उद्योगों के आधार पर नई विश्व अर्थव्यवस्था को महत्व दिया गया। कारण कि प्रथम विश्व युद्ध में इंग्लैण्ड की माली हालात काफी पतली हो चुकी थी ऐसे में इस अवधारणा या सिध्दांत पर इंग्लैण्ड ने अमल करना प्रारंभ किया। प्रथम विश्व युद्ध के बाद इंग्लैण्ड ने अपने कब्जे वाले देशों के प्राकृतिक संसाधनों के बूते पर केन की इस अवधारणा को अमलीजामा पहनाना प्रारंभ कर दिया। भारत जैसे कई देशों से विभिन्न उद्योगों के लिए कच्चा माल मनमाने मूल्य पर खरीदा गया और इं

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