पानी में डूबने पर भी नहीं बर्बाद होगी धान की फसल
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि वैज्ञानिकों ने साझा प्रयास से धान की एक नई किस्म विकसित की है, जो 15 दिनों तक पानी में डूबे रहने पर भी बर्बाद नहीं होगा। स्वर्णा सब-1 नाम की यह वेराइटी उन किसानों के लिए फायदेमंद साबित होगा, जो समुद्र तट, नदी व नाला के किनारे खेती करते हैं।
धान एक ऐसी फसल है, जिसे अधिक पानी लगता है। सामान्यतः यह सब किसान जानते हैं और खेतों में इसमें घुटने तक पानी भरते हैं। धान का ऊपरी हिस्सा बाहर एक-दो सेंटीमीटर भी खुला रहेगा तो धान को नुकसान नहीं होता। यदि धान की फसल पूरी डूब गई तो आमतौर पर ज्यादातर किस्म के धान की फसल बर्बाद हो जाती है, लेकिन स्वर्णा किस्म का धान तीन दिनों तक जलभराव को झेल लेता है। इससे अधिक दिनों तक पानी में डूबने के यह भी नहीं सह सकता। इसे देखते हुए कृषि वैज्ञानिकों ने ज्यादा डूबने वाले क्षेत्रों के लिए स्वर्णा सब-वन किस्म विकसित किया है।
डीएनए मार्कर तकनीक का उपयोग
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. केके साहू ने बताया कि ज्यादा पानी की समस्या समुद्र तटीय इलाके में आम है। इससे ओडिशा, आंधप्रदेश व तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों में धान की फसल को भारी नुकसान होता है। छत्तीसगढ़ में बाहरा जमीन और नदी, नालों के किनारे की जमीन पानी में डूब जाती है। जलभराव से धान की फसल को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए डीएनए मार्कर तकनीक के उपयोग से सब-1 (सबमर्जेंस जीन) को कृत्रिम रूप से स्वर्णा किस्म में डाला गया है। स्वर्णा सब-1 किस्म की फसल को 15 दिनों पानी में डूबे रहने के बाद भी नुकसान नहीं होगा।
उत्पादन व गुणवत्ता समान
कृषि विश्वविद्यालय के आनुवंशिकी एवं पादप प्रजनन वैज्ञानिक डॉ. संदीप भण्डारकर ने बताया कि स्वर्णा और स्वर्णा सब-1 दोनों किस्म एक जैसी ही है। दोनों के रंग-रूप व गुण सब समान हैं। स्वर्णा और स्वर्णा सब-1 दोनों का उत्पादन भी लगभग एक जैसा है।
विदेशी वेराइटी की अनेक किस्में
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में इस बार दर्जनों विदेशी किस्म के धान की फसल लगाई गई है। इसमें प्रमुख रूप से म्यानमार की अयप्यांग, फिलिपींस की विनिरहेन, इंडोनेशिया की लांग फु लबाट, चीन की हुंग मी सियाग मा तान, वियतनाम की बांगके, थाईलैंड की डाव लियांग व निया हाम माली (ज्वार जैसी बाली) किस्में शामिल हैं।
साभार नई दुनिया