ताकि मिट्टी भी ले सके पूरी सांस
देश के विभिन्न क्षेत्रों में मिट्टी की उर्वरता को बचाने की मुहिम की जानी चाहिए. खेती में रासायनिक कीटनाशक और उर्वरकों के प्रयोग दुष्परिणामों के बारे में किसानों को अवगत कराना चाहिए.
रसायनों व कीटनाशकों के प्रयोग से देशभर के खेतों की मिट्टी बेजान हो गई है. मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीव और लाभदायक जीवाणु खत्म हो रहे हैं. इसका सीधा असर खेती के उत्पादन पर पड़ता है. केंद्र सरकार रासायनिक खाद के लिए सालाना 50 हजार करोड़ रुपए की सब्सिडी दे रही है. जो खेती में रसायनों के प्रयोग को प्रेरित करते हुए मिट्टी का स्वास्थ्य खराब कर रही है. सरकार को जैविक खेती को बढ़ावा देना चाहिए.
देश की 70 प्रतिशत मिट्टी कमजोर हो गई है. इससे उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. सरकारी नीतियों पर विशेषज्ञों की राय है कि इसमें माटी की सेहत को पूरी तरह से उपेक्षित किया गया है. नीतियों का क्रियान्वयन इतना पक्षपातपूर्ण है कि खास किस्म के किसानों को ही इनका फायदा मिल रहा है.
किसानों की मिट्टी को लेकर समझ क्या है इसे जानने की कोशिश की जानी चाहिए. जिससे यह स्पष्ट हो सकेगा कि वास्तविक किसानों को इस बात का अहसास तक नहीं है कि सरकार की उन्हें लेकर नीतियाँ क्या है और उनकी मिट्टी रासायनिक खाद के प्रयोग से दिन-प्रतिदिन बीमार हो रही है.
हम जल और पेड़ बचाने के लिए जागरूक होते जा रहे हैं, समय हमें सचेत कर रहा है कि अपनी माटी की घुटती साँस पर भी एक गहरी नजर डालें ताकि देश की अर्थव्यवस्था का दारोमदार वह अपने कंधों पर उठा सकें. देश की माटी भी पूरी तरह साँस ले सके उसके लिए मिलजुल कर प्रयास करना जरूरी है.
सभार ; पलपलइंडिया