ओडिशा

ओड़िशा, (ओड़िआ: ଓଡ଼ିଶା) जिसे पहले उड़ीसा के नाम से जाना जाता था, भारत के पूर्वी तट पर स्थित एक राज्य है। ओड़िशा उत्तर में झारखंड, उत्तर पूर्व में पश्चिम बंगाल दक्षिण में आंध्र प्रदेश और पश्चिम में छत्तीसगढ से घिरा है तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी है। यह उसी प्राचीन राष्ट्र कलिंग का आधुनिक नाम है जिसपर 261 ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक ने आक्रमण किया था और युद्ध में हुये भयानक रक्तपात से व्यथित हो अंतत: बौद्ध धर्म अंगीकार किया था। आधुनिक ओड़िशा राज्य की स्थापना 1 अप्रैल 1936 को कटक के कनिका पैलेस में भारत के एक राज्य के रूप में हुई थी और इस नये राज्य के अधिकांश नागरिक ओड़िआ भाषी थे। राज्य में 1 अप्रैल को उत्कल दिवस (ओड़िशा दिवस) के रूप में मनाया जाता है।

क्षेत्रफल के अनुसार ओड़िशा भारत का नौवां और जनसंख्या के हिसाब से ग्यारहवां सबसे बड़ा राज्य है। ओड़िआ भाषा राज्य की अधिकारिक और सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भाषाई सर्वेक्षण के अनुसार ओड़िशा की 93.33% जनसंख्या ओड़िआ भाषी है। पाराद्वीप को छोड़कर राज्य की अपेक्षाकृत सपाट तटरेखा (लगभग 480 किमी लंबी) के कारण अच्छे बंदरगाहों का अभाव है। संकीर्ण और अपेक्षाकृत समतल तटीय पट्टी जिसमें महानदी का डेल्टा क्षेत्र शामिल है, राज्य की अधिकांश जनसंख्या का घर है। भौगोलिक लिहाज से इसके उत्तर में छोटानागपुर का पठार है जो अपेक्षाकृत कम उपजाऊ है लेकिन दक्षिण में महानदी, ब्राह्मणी, सालंदी और बैतरणी नदियों का उपजाऊ मैदान है। यह पूरा क्षेत्र मुख्य रुप से चावल उत्पादक क्षेत्र है। राज्य के आंतरिक भाग और कम आबादी वाले पहाड़ी क्षेत्र हैं। 1672 मीटर ऊँचा देवमाली, राज्य का सबसे ऊँचा स्थान है।

ओड़िशा में तीव्र चक्रवात आते रहते हैं और सबसे तीव्र चक्रवात उष्णकटिबंधीय चक्रवात 05बी, 1 अक्टूबर 1999 को आया था, जिसके कारण जानमाल का गंभीर नुकसान हुआ और लगभग 10000 लोग मृत्यु का शिकार बन गये।

ओड़िशा के संबलपुर के पास स्थित हीराकुंड बांध विश्व का सबसे लंबा मिट्टी का बांध है। ओड़िशा में कई लोकप्रिय पर्यटक स्थल स्थित हैं जिनमें, पुरी, कोणार्क और भुवनेश्वर सबसे प्रमुख हैं और जिन्हें पूर्वी भारत का सुनहरा त्रिकोण पुकारा जाता है। पुरी के जगन्नाथ मंदिर जिसकी रथयात्रा विश्व प्रसिद्ध है और कोणार्क के सूर्य मंदिर को देखने प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक आते हैं। ब्रह्मपुर के पास जौगदा में स्थित अशोक का प्रसिद्ध शिलालेख और कटक का बारबाटी किला भारत के पुरातात्विक इतिहास में महत्वपूर्ण हैं।
राज्य के नाम की उत्पत्ति
ओड़िशा नाम की उत्पत्ति संस्कृत के ओड्र विषय या ओड्र देश से हुई है। ओडवंश के राजा ओड्र ने इसे बसाया पाली और संस्कृत दोनों भाषाओं के साहित्य में ओड्र लोगों का उल्लेख क्रमशः ओद्दाक और ओड्र: के रूप में किया गया है। प्लिनी और टोलेमी जैसे यूनानी लेखकों ने ओड्र लोगों का वर्णन ओरेटस (Oretes) कह कर किया है। महाभारत में ओड्रओं का उल्लेख पौन्द्र, उत्कल, मेकल, कलिंग और आंध्र के साथ हुआ है जबकि मनु के अनुसार ओड्र लोग पौन्द्रक, यवन, शक, परद, पल्ल्व, चिन, कीरत और खरस से संबंधित हैं। प्लिनी के प्राकृतिक इतिहास में ओरेटस लोग उस भूमि पर वास करते हैं जहां मलेउस पर्वत (Maleus) खड़ा है। यहां यूनानी शब्द ओरेटस संभवत: संस्कृत के ओड्र का यूनानी संस्करण है जबकि, मलेउस पर्वत पाललहडा के समीप स्थित मलयगिरि है। प्लिनी ने मलेउस पर्वत के साथ मोन्देस और शरीस लोगों को भी जोड़ा है जो संभवत: ओड़िशा के पहाड़ी क्षेत्रों में वास करने वाले मुंडा और सवर लोग हैं।
कृषि
ओडिशा की अर्थव्यवस्था में कृषि की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। ओडिशा की लगभग 80प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्य में लगी है, हालांकि यहाँ की अधिकांश भूमि अनुपजाऊ या एक से अधिक वार्षिक फ़सल के लिए अनुपयुक्त है। ओडिशा में लगभग 40 लाख खेत हैं, जिनका औसत आकार 1.5 हेक्टेयर है, लेकिन प्रति व्यक्ति कृषि क्षेत्र 0.2 हेक्टेयर से भी कम है। राज्य के कुल क्षेत्रफल के लगभग 45 प्रतिशत भाग में खेत है। इसके 80 प्रतिशत भाग में चावल उगाया जाता है। अन्य महत्त्वपूर्ण फ़सलें तिलहन, दलहन, जूट, गन्ना और नारियल है। सूर्य के प्रकाश की उपलब्धता में कमी, मध्यम गुणवत्ता वाली मिट्टी, उर्वरकों का न्यूनतम उपयोग और मानसूनी वर्षा के समय व मात्रा में विविधता होने के कारण यहाँ उपज कम होती है

चूंकि बहुत से ग्रामीण लगातार साल भर रोज़गार नहीं प्राप्त कर पाते, इसलिए कृषि- कार्य में लगे बहुत से परिवार गैर कृषि कार्यों में भी संलग्न है। जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति कृषि भूमि की उपलब्धता कम होती जा रही है। भू- अधिगृहण पर सीमा लगाने के प्रयास अधिकांशत: सफल नहीं रहे। हालांकि राज्य द्वारा अधिगृहीत कुछ भूमि स्वैच्छिक तौर पर भूतपूर्व काश्तकारों को दे दी गई है। चावल ओडिशा की मुख्य फ़सल है। 2004 - 2005 में 65.37 लाख मी. टन चावल का उत्पादन हुआ। गन्ने की खेती भी किसान करते हैं। उच्च फ़सल उत्पादन प्रौद्योगिकी, समन्वित पोषक प्रबंधन और कीट प्रबंधन को अपनाकर कृषि का विस्तार किया जा रहा है। अलग -अलग फलों की 12.5 लाख और काजू की 10 लाख तथा सब्जियों की 2.5 लाख कलमें किसानों में वितरित की गई हैं। राज्य में प्याज की फ़सल को बढावा देने के लिए अच्छी किस्म की प्याज के 300 क्विंटल बीज बांटे गए हैं जिनसे 7,500 एकड ज़मीन प्याज उगायी जाएगी। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत गुलाब, गुलदाऊदी और गेंदे के फूलों की 2,625 प्रदर्शनियाँ की गईं। किसानों को धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने के लिए ओडिशा राज्य नागरिक आपूर्ति निगम लि. (पी ए सी), मार्कफेड, नाफेड आदि एजेंसियों के द्वारा 20 लाख मी. टन चावल ख़रीदने का लक्ष्य बनाया है। सूखे की आशंका से ग्रस्त क्षेत्रों में लघु जलाशय लिए 13 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में 2,413 लघु जलाशय विकसित करने का लक्ष्य है।

जंगली जानवरों के आतंक से परेशान किसान

जंगली जानवरों के आतंक से परेशान किसान

नीलगाय , बंदर , सुअर और जंगली जानवरों द्वारा फसलों को होने वाले भारी नुकसान से परेशान किसानों ने कुछ स्थानों पर सब्जियों तथा बागवानी फसलों की खेती से मुंह मोडना शुरू कर दिया है ।

सूखे से निपटने के लिए आपदा राहत कोष बनाए केंद्र: उच्चतम न्यायाल

सूखे से निपटने के लिए आपदा राहत कोष बनाए केंद्र: उच्चतम न्यायाल

उच्चतम न्यायालय ने सूखे जैसी स्थिति से निपटने के लिए आज केंद्र को आपदा राहत कोष बनाने के लिए कहा और कृषि मंत्रालय को आदेश दिया कि स्थिति का आकलन करने के लिए वह बिहार, गुजरात और हरियाणा जैसे प्रभावित राज्यों के साथ एक सप्ताह के अंदर एक बैठक करे। न्यायमूर्ति एमबी लोकुर की अगुवाई वाली पीठ ने केंद्र को आदेश दिया कि वह आपदा प्रबंधन कानून के प्रावधानों का कार्यान्वयन करे और वैज्ञानिक आधारों पर सूखे की घोषणा करने के लिए एक समय सीमा तय करे। साथ ही न्यायालय ने आपदा से प्रभावित किसानों को कारगर राहत देने के लिए केंद्र को सूखा प्रबंधन नियमावली की समीक्षा करने और संकट से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय योजन

सूखे पड़े हैं देश के जलाशय, बचा है केवल 24% पानी

सूखे पड़े हैं देश के जलाशय, बचा है केवल 24% पानी

एक ताजा रिपोर्ट में बेहद चौंकाने और परेशान करने वाले आंकड़े सामने आए हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक देश के 91 बड़े जलाशयों में केवल 24 फीसदी पानी ही बचा है। मतलब यह कि इन जलाशयों में कुल 37.92 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी ही बचा है। केंद्रीय जल आयोग ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा कि सात अप्रैल के आंकड़ों के अनुसार इन जलाशयों में जितना पानी है वह पिछले साल से कम है। इस साल इन जलाशयों में पानी की कमी की वजह 2014 और 2015 में हुई कम बारिश है। क्योंकि इन जलाशयों का पानी सिंचाई के लिए होता है, ऐसे में आंकड़ों को देखते हुए लगता है कि इसका असर रबी की फसल के लिए पानी की सप्लाई पर भी पड़ेगा। हालांकि मौसम विभाग

कृषि प्रधान राज्य उत्तर प्रदेश और पंजाब खेती वरीयता की सूची में पिछड़े

कृषि प्रधान राज्य  उत्तर प्रदेश और पंजाब खेती वरीयता की सूची में पिछड़े

खेती में बाजी मारने वालों की सूची से इस बार उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे कृषि प्रधान राज्यों का नाम गायब है। अपने किसानों की मेहनत के बूते मध्य प्रदेश देश के सभी राज्यों पर भारी पड़ा है। खाद्यान्न की पैदावार में मध्य प्रदेश को पहला पुरस्कार दिया गया है।

वहीं, हरियाणा ने चावल की उत्पादकता में सबको पछाड़ दिया है। राजस्थान ने गेहूं की पैदावार में सभी राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। कृषि कर्मण पुरस्कार के लिए चयनित राज्यों के नाम की घोषणा मंगलवार को केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने की। खाद्यान्न की पैदावार में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले आठ राज्यों को चुना गया है।