Organic Farming

जून माह में फसल उत्पादन हेतु सलाह

मूंग की पकी हुई फलियों की तुड़ाई कर लें तथा 70-80% फलियाँ पकने पर फसल की कटाई कर लें। उर्द की फसल पूरी पक जाने पर एक साथ कटाई करें। कटी हुई फसल को सुखाकर गहाई करें तथा एक बार पुनः दानों को अच्छी तरह साफकर, सुखाकर भंडारित करें।

खाली खेतों से मृदा नमूना लेकर मृदा परीक्षण करायें। जून की गर्मी में खेत को मिट्टी पलट हल से गहरा जोतकर मिट्टी को धूप में तपायें।

पौधों में मोलिब्डेनम का महत्व

मोलिब्डेनम पौधों द्वारा लिया जाने वाले आठ आवश्यक सुक्ष्म रासायनिक तत्वों में से एक है। अन्य सात लोहा, तांबा, जस्ता, मैंगनीज, क्लोरीन, निकल और बोरान हैं। इन तत्वों को सुक्ष्म तत्व कहा जाता हे, क्योंकि पौधों को इनकी बहुत कम मात्रा में आवश्यकता होती है। प्रमुख  आवश्यक पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, सल्फर, कैल्शियम और मैग्नीशियम हैं। लेकिन पोधो के सामान्य विकास के लिए इन सुक्ष्म रासायनिक तत्वों की बहुत आवश्यकता होती हैं। इन आठ सुक्ष्म रासायनिक तत्वों की तुलना में मोलिब्डेनम की बहुत कम मात्रा में जरूरत होती है।

धान में पौधशाला प्रबन्धन

धान विश्व में सर्वाधिक क्षेत्रफल में उगायी जाने वाली फसल है तथा अधिकांश क्षेत्रफल में इसकी खेती रोपाई विधि से होती है। रोपाई विधि में पौधशाला में धान की पौध तैयार की जाती है जो एक निश्चित अवधि के पश्चात कंदैड़ किये हुये खेत में रोप दी जाती है। रोपाई विधि को आरम्भ में खरपतवार प्रबन्धन के उद्देश्य से अपनाया गया था परन्तु इसके अतिरिक्त रोपाई विधि में चुनकर स्वस्थ पौध की रोपाई तथा निर्धारित दूरी पर पौध का रोपण करने की भी सुविधा है जिससे पानी, पोषक तत्वों तथा सूर्य के प्रकाश की समान उपलब्धता होती है। अच्छे उत्पादन के लिये आवश्यक है कि पौधशाला का बेहतर ढंग से प्रबन्धन किया जाये। पौधशाला प्रबन

टिड्डी दल के सम्बंध में जारी चेतावनी एवं सलाह

टिड्डियों की गणना कृषि जगत के सर्वाधिक संहारक कीटों में होती है। ये सर्वाहारी होते हैं तथा छोटे, मध्यम या बड़े झुंडों में रहकर सभी प्रकार की हरी वनस्पतियों को खाकर नष्ट कर देते हैं। ये ओर्थोप्टेरा गण के कीट हैं जिनमें भारत में प्रचलित टिड्डियों के नाम प्रवासी टिड्डी, ट्री टिड्डी, बम्बई टिड्डी, मरुस्थली टिड्डी आदि हैं। इनमें मरुस्थली टिड्डी सर्वाधिक हानिकारक है। इस वर्ष ये टिड्डी दल ईरान से पाकिस्तान होते हुये गुजरात तथा राजस्थान के रास्ते भारत में प्रवेश करके क्षति पहुंचा रहे हैं। वर्तमान में ये उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर आगरा की तरफ बढ़ रहे हैं। इसके पश्चात इसके बरेली मण्डल की तरफ बढ्ने

ककोड़ा की खेती

ककोड़ा या कर्कोट एक सब्जी है। इसका फल छोटे करेले से मिलता-जुलता होता है जिसपर छोटे-छोटे कांटेदार रेशे होते हैं। राजस्थान में इसे किंकोड़ा भी कहते हैं |इस सब्जी में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होने के साथ-साथ ये काफी स्वादिष्ट भी बताया जाता है। यह सब्जी से कैंसर और हार्ट अटैक जैसी घातक बीमारियां भी काफी हद तक कम हो जाती हैं।
ककोड़ा की सब्जी पौष्टिक गुणों से मालामाल होता है। ककोड़ा के हरे रंग वाले फलों की सब्जी बनाई जाती है, जिसमें 9-10 कड़े बीज होते हैं।
जलवायु

सूक्ष्म जीवों से ही सम्भव है मृदा सुधार

आधुनिक समय में हमारे पर्यावरण में असंतुलन पैदा हो गया है। हमारी मृदा, जल, वायु व वन सभी प्रदूषित हो रहे हैं। जिसके कारण जैव-विविधता के लिए संकट, बाढ़, सूखा व अन्य प्राकृतिक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इस कारण अब समय यह चेतावनी दे रहा है कि हमें प्राकृतिक स्रोतों की शुद्धता बनाए रखने के लिए प्रयास करना होगा। प्राकृतिक स्रोतों की शुद्धता बनाए रखने में सूक्ष्म जीवों का कितना बड़ा योगदान है ? बता रहे हैं, चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के डॉ. खलील खान एवं डॉ.

बैंगन की व्यावसायिक खेती

भारत में उगाई जाने वाली सब्जियों में बैगन एक प्रमुख सब्जी है।इस क्षेत्र से बैंगन पंजाब, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान आदि जैसे सुदूर क्षेत्रों को बिक्री हेतु भेजा जाता है। जनपद बरेली में ही बैंगन की खेती के अंतर्गत लगभग 2300 हेक्टेयर क्षेत्र है। कुछ वर्षों पहले बैगन को केवल गरीबों की सब्जी माना जाता था। लेकिन अब बैंगन के विभिन्न व्यंजन बऩने लगे हैं व इसके विभिन्न रंगों के फलों वाली प्रजातियां उपलब्ध होने के कारण, बाजार में बैंगन की मांग बहुत बढ़ गई है। बैगन हमारे मुख्य भोजन के रूप में होटलों रेस्टोरेंटो, ढाबों व विभिन्न शादी-ब्याह, पार्टी आदि में बैगन का भरता,

फूलगोभी की व्यावसायिक खेती

किसान साथियों फूलगोभी इस क्षेत्र की प्रमुख सब्जी की फसल है । सामान्य रूप से किसान इसे जाड़े में उगाते हैं। लेकिन फूलगोभी की अनेकों प्रजातियां बाजार में उपलब्ध है, जिनका आवश्यकतानुसार चयन करके, वर्षभर फूलगोभी उगा सकते हैं। फूलगोभी उगाने से निम्न लाभ है । फूलगोभी बहुत कम समय अर्थात 80 से 85 दिन में तैयार होने वाली एक सब्जी फसल है ।

मई माह में फसल उत्पादन हेतु सामयिक सलाह

1- गेहूँ की देर से बोयी जाने वाली प्रजातियों तथा जई की कटाई, मड़ाई, सफाई करके अच्छी तरह सुखाकर भंडारण करें। बीज के लिये रक्खे जाने वाले गेहूँ को सौर ताप विधि से उपचारित कर भंडारण करें।

2- जौं, चना, मटर, मसूर आदि को अच्छी तरह सुखाकर भंडारित करें।

3- उर्द व मूँग की आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई, सिंचाई करते रहें। मूँग की फलियों की समय से तुड़ाई करें। समय से बोयी गई उर्द की उचित समय पर कटाई करें।

आड़ू की फसल से अधिक लाभ कैसे लें

किसान साथियों इस समय बरेली क्षेत्र में आड़ू के पेड़ों के ऊपर फल पक रहे हैं । बरेली जनपद में आम, अमरूद, व लीची के बाद आड़ू चौथी प्रमुख बागानी फसल है। वैसे तो आड़ू पर्वतीय क्षेत्र की मुख्य फसल है । लेकिन इसकी कुछ प्रजातियां समशीतोष्ण जलवायु, जैसे पंजाब से लेकर तराई भाभर, उत्तरी उत्तर प्रदेश व बिहार तक सफलतापूर्वक की जाती है। आड़ू एक बहुत ही स्वास्थ्य वर्धक फल है। आडू पेट के कीड़ों के लिए भी बहुत मुफीद माना गया है। विशेष रूप से कच्चा आड़ू सुबह-सुबह निहार मुंह खाने से पेट के कीड़े निकलने मे सहायता मिलती है। इससे अनेक उत्पाद भी बनाए जाते हैं। जैसे जैम, मार्मलेड, जैली, आडू का शरबत, जूस आदि।

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