Organic Farming
जैविक कृषि एक समग्र उत्पादन प्रबंधन सिस्टम
Submitted by Aksh on 26 December, 2015 - 20:59अनार की खेती
Submitted by Aksh on 20 December, 2015 - 21:09अनार का पौधा तीन-चार साल में पेड़ बनकर फल देने लगता है और एक पेड़ करीब 25 वर्ष तक फल देता है। साथ ही अब तक के अनुसंधान के मुताबिक प्रति हैक्टेयर उत्पादकता बढ़ाने के लिए अगर दो पौधों के बीच की दूरी को कम कर दिया जाए तो प्रति पेड़ पैदावार पर कोई असर नहीं पड़ता है। लेकिन ज्यादा पेड़ होने के कारण प्रति हैक्टेयर उत्पादन करीब डेढ़ गुना हो जाता है। परंपरागत तरीके से अनार के पौधों की रोपाई करने पर एक हैक्टेयर में 400 पौधे ही लग पाते हैं जबकि नए अनुसंधान के अनुसार पांच गुणा तीन मीटर में अनार के पौधों की रोपाई की जाए तो पौधों के फलने-फूलने पर कोई असर नहीं पड़ेगा और एक हैक्टेयर में छह सौ पौधे लगने से
मसूर की खेती
Submitted by Aksh on 13 December, 2015 - 11:41रबी की दलहनी फसलों में मसूर का प्रमुख स्थान है। यह यहाँ की एक बहुप्रचलित एवं लोकप्रिय दलहनी फसल है जिसकी खेती प्रायः हर राज्य में की जाती है। कृषि वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि धान के कटोरे में दलहन की खेती की भी अपार संभावनाएं हैं।इसकी खेती प्रायः असिंचित क्षेत्रों में धान के फसल के बाद की जाती है । रबी मौसम में सरसों एवं गन्ने के साथ अंततः फसल के रूप में लगाया जाता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाये रखने में भी मसूर की खेती बहुत सहायक होती है। उन्नतशील उत्पादन तकनीको का प्रयोग करके मसूर की उपज में बढ़ोतरी की जा सकती है।
जलवायु
सतावर की खेती
Submitted by Aksh on 11 December, 2015 - 23:04सतावर जड़ वाली एक औषधीय फसल है जिसकी मांसल जड़ों का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार की औषधियों के निर्माण में होता है। सतावर को लोग भिन्न-भिन्न नाम से पुकारते हैं। अंग्रेज लोग इसे एस्पेरेगस कहते हैं। कहीं इसे लोग शतमली तो कहीं शतवीर्या कहते हैं। सतावर कहीं वहुसुत्ता के नाम से विख्यात है तो कहीं यह शतावरी के नाम से भी। यह औषधीय फसल भारत के विभिन्न प्रांतों में प्राकृतिक अवस्था में भी खूब पाई जाती है। विश्व में सतावर भारत के अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया, नेपाल, चीन, बांग्लादेश तथा अफ्रीका में भी पाया जाता है। सतावर का प्रयोग मुख्य रूप से औषधि के रूप में किया जाता है। इसका इस्तेमाल बलवर्धक, स्तनपान करने वाली
नीम एक सर्वोत्तम कीटनाशक
Submitted by Aksh on 6 December, 2015 - 19:26प्रक्रति की एक अमूल्य देंन है नीम नीम लोगों की दैनिक जिन्दगी में एक महत्वपूर्ण भूमिका रखता है नीम एक औषधि है और एक प्रभावशाली कीटनाशक भी आधुनिक जहरीले कीटनाशकों की तुलना में नीम एक सर्वोत्तम कीटनाशक है। अनाज के भंडारण, दीमकों से सुरक्षा से लेकर पेड़-पौधों की हर तरह की बीमारी में इसके विविध उपयोग आज भी लोग किया करते हैं। इस क्षेत्र में किसानों को यदि वैज्ञानिकों का सहयोग मिल जाए तो यह अकेला वृक्ष दुनिया भर के कीटनाशकों के कारखाने बंद करवा सकता है।
फसलों पर खाद एवं उर्वरकों का प्रभाव
Submitted by Aksh on 3 December, 2015 - 10:34जिस प्रकार मनुष्य तथा पशुओं के लिए भोजन की आवश्यकता पड़ती है, उसी प्रकार फसलों से उपज लेने के लिए पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों की आपूर्ति करना आवश्यक है| फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्व जमीन में खनिज लवण के रूप में उपस्थित रहते हैं, लेकिन फसलों द्वारा निरंतर पोषक तत्वों का उपयोग, भूमि के कटाव तथा रिसाव के द्वारा भूमि से एक या अधिक पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, जिसे किसान भाई खाद और उर्वरक के रूप में खेतों में डालकर फसलों को उनकी आपूर्ति करते हैं ।
मिट्टी में नमी कायम रखने के आधुनिक तरीके
Submitted by Aksh on 21 November, 2015 - 18:54मिट्टी में जरूरत के मुताबिक नमी का होना बहुत जरूरी है । खेत की तैयारी से लेकर फसल की कटाई तक मिट्टी में एक निश्चित नमी रहनी चाहिए । कितनी नमी हो यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन सा कार्य करना है और मिट्टी की बनावट कैसी है । जैसे बलुवाही मिट्टी में कम नमी रहने से भी जुताई की जा सकती है, लेकिन चिकनी मिट्टी में एक निश्चित नमी होने से ही जुताई हो सकती है । इसी तरह अलग-अलग फसलों के लिए अलग-अलग नमी रहनी चाहिए । जैसे -धान के लिए अधिक नमी की जरूरत है लेकिन बाजरा, कौनी वगैरह कम नमी में भी उपजाई जा सकती है|
राइजोबियम जीवाणु कल्चर एवं उपयोगिता
Submitted by Aksh on 18 November, 2015 - 07:27राइजोबियम कल्चर 'राइजोबियम' नामक जीवाणुओं का एक संग्रह है जिसमें हवा से नेत्रजन प्राप्त करने वाले जीवाणु काफी संखया में मौजूद रहते है, जैसा कि आप जानतें है कि सभी दलहनी फसलों की जड़ों में छोटी-छोटी गांठें पायी जाती है । जिसमें राइजोबियम नामक जीवाणु पाये जाते हैं । ये जीवाणु हवा से नेत्रजन लेकर पौधों को खाद्य के रूप में प्रदान करते हैं । इस कल्चर का प्रयोग सभी प्रकार के दलहनी फसलों में किया जाता है ।