Organic Farming
वर्मीवाश : एक तरल जैविक खाद
Submitted by Aksh on 20 May, 2015 - 23:29ताजा वर्मीकम्पोस्ट व केंचुए के शरीर को धोकर जो पदार्थ तैयार होता है उसे वर्मीवाश कहते हैं। यह भिन्न-भिन्न स्थानों पर विभिन्न संस्थाओं/व्यक्तियों द्वारा अलग-अलग विधियां अपनायी जाती हैं, मगर सबका मूल सिद्धान्त लगभग एक ही है। विभिन्न विधियों से तैयार वर्मीवाश में तत्वों की मात्रा व वर्मीवाश की सांद्रता में अन्तर हो सकता है।
बनाने की प्रक्रिया:-
वर्मी कम्पोस्ट से बढ़टी है खेत की उर्वरता
Submitted by Aksh on 19 May, 2015 - 23:38लिलियम, देखभाल, प्रत्यारोपण और प्रजनन
Submitted by Aksh on 19 May, 2015 - 01:03परिवार लिली लिली परिवार की (लिलियम) यूरोप और एशिया में मुख्य रूप से वितरित कर रहे हैं कि 110 से अधिक प्रजातियों है। इसका नाम सुंदर फूल लिली के रूप में शाब्दिक अनुवाद जो drevnegallskomu शब्द "मत करो", के लिए बाध्य "सफेद सफेद।" उन्होंने कहा, सफेद, पीला, नारंगी, गुलाबी, लाल और दूसरों को हो सकता है जो सबसे विविध आकार और रंग है कि फूलों के साथ एक बारहमासी बल्बनुमा संयंत्र है। कई गेंदे एक बहुत ही सुखद खुशबू है।
लिलियम फूल की जैविक खेती
Submitted by Aksh on 19 May, 2015 - 00:57लिलियम में प्रवर्धन के लिए की जाने वाली प्रमुख विधियाँ
Submitted by Aksh on 19 May, 2015 - 00:45फूल आदिकाल से ही अपने रंग-रूप और बनावट के कारण मनुष्य को अकर्षित करते रहे हैं । वर्तमान समय में फूलों की खेती एक उद्योग का रूप ले चुकी है जो विश्व के अनेक देशों की आय का मुख्य स्रोत है । हिमालय की गोद में बसा हिमाचल प्रदेश प्रकृति द्वारा वर-प्रदत्त उन पर्वतीय राज्यों में से एक है जहाँ की जलवायु फूलों की व्यावसायिक खेती व इसके प्रवर्धन के लिए सर्वथा उत्तम है । इसी कारण प्रदेश के किसान व बागवान फूलों की खेती में अधिक रुचि लेने लगे हैं जिसके परिणाम स्वरूप पुष्प व्यवसाय के अंतर्गत क्षेत्रफल निरंतर बढ़ता जा रहा है । वर्ष 1990 में फूलों के अंतर्गत केवल 5.0 हेक्टर क्षेत्र था जो वर्ष 2013-14 में बढ़क
जड़ युक्त सब्जियों की जैविक खेती
Submitted by Aksh on 18 May, 2015 - 23:15हमारे जीवन में हरी पत्तेदार व जड़ वाली सब्जियों का महत्व है। जिसमें शलजम, मूली, गाजर, अरबी, कमल आदि अति आवश्यक है, जिसका अनुमान हम इस तथ्य से स्पष्ट कर सकते हैं कि विश्व में लगभग 46 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार हैं। भारत में कुल जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा, विशेषकर महिलाएॅं तथा बच्चे कुपोषण से ग्रस्त हैं, जिसका मुख्य कारण आहार में कम सब्जियों का उपयोग होना है। आहार विशेषज्ञों के अनुसार संतुलित आहार में प्रतिदिन मनुष्य को 285 ग्राम सब्जियाॅं लेनी चाहिए, जिसमें 100 ग्राम जड़ व कन्दीय सब्जियाॅं, 115 ग्राम पत्तेदार सब्जियाॅं एवं 75 ग्राम अन्य सब्जियाॅं होनी चाहिए।
कुदरती खेतीः क्या है शुरू कैसे करें?,लाभ तथा अन्य जानकारियां
Submitted by Aksh on 18 May, 2015 - 23:07र्ज और जहर बगैर खेती के कई रूप और नाम हैं- जैविक, प्राकृतिक, जीरो-बजट, सजीव, वैकल्पिक खेती इत्यादि। इन सब में कुछ फर्क तो है परन्तु इन सब में कुछ महत्वपूर्ण तत्त्व एक जैसे हैं। इसलिये इस पुस्तिका में हम इन सब को कुदरती या वैकल्पिक खेती कहेंगे। कुदरती खेती में रासायनिक खादों, कीटनाशकों और बाहर से खरीदे हुए पदार्थों का प्रयोग या तो बिल्कुल ही नहीं किया जाता या बहुत ही कम किया जाता है। परन्तु कुदरती खेती का अर्थ केवल इतना ही नहीं है कि यूरिया की जगह गोबर की खाद का प्रयोग हो एक बात शुरू में ही स्पष्ट करना आवश्यक है कि कुदरती खेती अपनाने का अर्थ केवल हरित क्रांति से पहले के तरीक
कुदरती खेती की महत्वपूर्ण जानकारियाँ
Submitted by Aksh on 18 May, 2015 - 22:421. एक एकड़ में शीशम, आम, कटहल, सिल्वर ओक, चीकू, नारियल, पपीता, केला व सागौन आदि ऐसे पेड़ जो खेत की उर्वरता बढ़ाने में मदद करते हैं, को अवश्य लगाने चाहिए। इन वृक्षों पर बैठने वाले पंछी कीटों को खाकर फसलों को बचाने का काम करते हैं साथ ही खेत में खाद भी देते हैं। पंछी अनाज कम व फसल को नुकसान पहुँचाने वाले कीड़ों को अधिक खाते हैं। एक चिड़िया दिन में लगभग 250 सूंडी खा लेती है। पेड़ों से 10-20 साल में किसानों को अतिरिक्त आर्थिक लाभ मिलता है। जाटी आदि से पशुओं को आहार्। रसोई के लिए लकड़ी तथा परिवार के लिए फल मिलते हैं। पेड़ों के साथ गिलोय व काली मिर्च आदि लगाकर और अcधिक आर्थिक लाभ कमा सकते हैं।